पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२०६

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कजा मिल रहा है वह फारसी में नहीं । किन्तु अफगानों को किसी नवीन पद्धति पर जे चलना यदि अत्यंत कठिन न होता तो जमालुद्दीन सा विचक्षण पुरुप अफगा- नेस्तान को छोड़कर मिस्र को अपना घर क्यों बनाता और अमानुल्लाह सा वीर देश- भक्त विदेश में अपना दिन क्यों काटता ? तात्पर्य यह कि तसव्वुफ के प्रति अफगानों की वही पुरानी भावना आज भी बनी है। उनके संबंध में याद रखना चाहिए कि वे अधिकांश सुन्नी है। तसव्वुफ से उनको प्रेम है और उनमें अनेक प्रसिद्ध सूफी उत्पन्न भी हो चुके हैं। पीरी-मुरीदी का भाव उनमें बरावर बना रहा है और पीर- परस्तो में वे आज भी मग्न है । अफगानों का अतीत अाज उनके सामने धूम रहा है पर उनका कोई अपना निजी साहित्य नहीं। फारसी के पहले उनकी शिष्ट भाषा संस्कृत थी । उसको ओर भी उनका ध्यान गया है और फलतः वे आज अपने को आर्य' समझ भी रहे हैं, 'तुर्क' नहीं ! निदान उनकी आर्य-संस्कृति उनको तसव्वुफ से अलग नहीं कर सकती। मुसलिम प्रदेशों के तसव्वुफ पर विचार करने के बाद अब कुछ उन देशों के तसव्युफ पर ध्यान देना चाहिए जिनमें मुसलमान हैं तो काफी, पर उनकी गणन इसलामी देशों में नहीं होती। कहना न होगा कि भारत ही एक ऐसा समृद्ध देश है जिसमें संख्या की दृष्टि से सब देशों से अधिक मुसलमान बसते हैं, परंतु, फिर भी, वह हिंदू-देश ही समझा जाता है। जिस देश में मुसलिम संसार के चौथाई मुसलमान बसते हैं और तो भी उसको मुसलमान नहीं बना पाते उसके संबंध में सहसा कुछ कह बैठना ठीक नहीं। फिर भी प्रसंगवश यहां संक्षेप में कुद कह देना अनिवार्य सा हो गया है। भारत अध्यात्म का जन्मदाता और तसव्वुफ का घर कहा जाता है। प्रारं में इसलाम की धारणा इसके प्रति चाहे जैसी भी रही हो किंतु मध्यकाल के सूफी तं उसके गुणगान में सदा मन रहे हैं । कहा तो यहां तक गाया है कि अरब इस देश (१) पहिस्टरी श्राव पर्शियन लिटरेचर इन माडर्न टाइम्स, १६५-६ (२) अरब और हिंदुस्तान के तालुकात, पृ० १ ।