पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२०४

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१८७ समन्वय की ओर अग्रसर है। उसके सामने एक ओर दीन और देश का प्रश्न है तो दूसरी और प्राची और प्रतीची की उलझन । वह अपने प्रयत्न से पूर्व और पश्चिम को मिलाकर एक कर देना चाहता है। उसके सपूत इसलाम; प्रगति और अपनी प्राचीन संस्कृति का मेल चाहते हैं। उनकी धारणा है कि वे इसलाम के साथ ही साथ मिस्र के प्राचीन गौरव और वर्तमान सभ्यता की सेवा में समर्थ होंगे। उनके साहित्य में तसव्वुफ की प्रतिष्ठा है। सूफियों के अनूठे भाव उनके मस्तिष्क में भरे हैं। यूनान और भारत के दार्शनिक विचार उन्हें अब भी भाते हैं। उनके सामने भी इसलाम और राष्ट्र का द्वंद्व है। उनमें से कुछ तो राष्ट्र को प्रधानता देते हैं और कुछ इसलाम को। कुछ अपने को सर्वप्रथम मुसलिम कहते हैं तो कुछ मिस्री । सच्चे सूफी अपने को देशकात और मजहब से मुक्त कर सर्वत्र प्रेम का प्रचार करना चाहते हैं । मिस्र में भी उनकी जो उपेक्षा हो रही है उस को युग- धर्म ही समझना चाहिए ; किसी राष्ट्र विशेष का अपराध नहीं। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि मिस्त्र में तसव्वुफ के सूल-भावों की रक्षा तो हो रही है, पर वहाँ भी दरवेशों का गौरव नष्ट होता जा रहा है। राष्ट्र का ध्यान उनकी अोर नहीं है । सूफियों के प्रतिकूल वहाँ कुछ कहा तो अवश्य जाता है, किंतु उनके शील और स्वभाव की निन्दा नहीं की जाती । मिस्र में तसव्वुफ के विध्वंस का कोई प्रायोजन भी नहीं है। वह परिस्थिति के अनुकूल फलफूल सकता है । मित्र के अतिरिक्त अफरीका के अन्य जिन भूखंडों में इसलाम का प्रसार है उनमें तसव्वुफ की धाक श्राज भी जमी है और कहीं तो बढ़ भी रही है। उनमें अभी कोई राजनीतिक हलचल इतनी प्रवल नहीं हुई है कि उससे उनमें भी राष्ट्र- भावना का उदय हो और तसव्वुफ का विरोध डट कर किया जाय । प्रचार-प्रिय मुसलमानों के प्रयत्न से उनमें इसलाम के मजहबी भाव भी बढ़ रहे हैं और इसके फल स्वरूप उनमें कुछ इसलामी कट्टरता भी पा रही है। पर सामान्यतः उनमें दरवेशों की पूरी प्रतिष्ठा है । शामी नबियों की भाँति ही अफरीका के दरवेश भी सिद्धियों के दाता और प्राणियों के रक्षक समझ जाते हैं। उनकी बुद्धि अभी इतनी विकसित नहीं हुई है कि वे तसव्वुफ के सिद्धांतों को समझ सके। उनके लिये तो फकीरों की