पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१८७

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तसव्वुफ अथवा सूफीमत इतना मूर्त बना दिया कि अंधे भी टटोल कर उसे समझ सकते हैं और सत्य के प्रकाश में अपनी अन्तरात्मा को देख सकते हैं अथवा परम प्रियतम का साक्षात्कार कर सकते हैं। कथानकों के आधार पर मसनवियों में जो बात कही जाती है वह सीधे दिल में बैठ जाती है और जनता मुनती भी उसे बड़े चाव से है। पर गजल में यह बात नहीं होती। उसमें तो सरस छीटों ही काम लिया जाता है, और प्रेमी तड़प तड़प कर रह जाता है । फिर भी फारिज ने इस क्षेत्र में वही किया जो उक्त कवियों ने मसन वियों में किया था । प्रसिद्ध है कि फारिज भी जब हाल की दशा से सचेत होता तभी अपने भावों को व्यक्त करता था । फारिज के पद्यों में उसके भाव स्पष्ट झलकते हैं और उससे तसव्वुफ पूर्णतः प्रकट हो जाता है। किंतु भावनाओं की व्यंजना मात्र से फारिज को संतोष नहीं होता। वह तो अपने मत के प्रतिपादन में निमग्न हो जाता है। उसकी रचनाओं में कहीं कहीं जो अलौकिक झलक दिखाई पड़ती है उसीके प्रकाश में हम उसके परम प्रियतम का साक्षात्कार कर पाते हैं। अरबी में वही एक कवि है जो फारसी के प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित कवियों से बार ले सकता है। फिर भी फारिज सर्वथा अरब है। उसमें वह रोचकता, वह कोमलता, वह प्रसन्नता नहीं जो हाफिज के पद्यों में कूट कूट कर भरी है । सचमुच 'हाफ़िज़' में काव्य-कला की पराकाष्ठा है। रूमी कवि से कहीं अधिक प्राचार्य हैं, किंतु हाफिज में प्राचार्यत्व का नाम तक भी नहीं है। हाफिज फारस के सच्चे कवि हैं । ईरान उन्हीं की वाणी से बोलता है। लिसानुलरोब' या 'परोक्ष की वाणी' वे कहे भी जाते हैं । हाफिज के पदों में जो प्रसाद है, जो रस है, जो सफाई है, वह अन्यत्र कहाँ ? इतना अवश्य है कि हाफिज ने अलौकिक को लौकिक के आव. रण में इस ढंग से लपेट कर रख दिया है कि उसको लौकिक से अलौकिक समझ लेना अत्यंत कठिन हो जाता है। कुछ लोग तो उनकी सुरति और सुरा को और कुछ मानते ही नहीं। फारसी के इन चार प्रसिद्ध कवियों के अध्ययन के उपरांत किसी अन्य कवि के अध्ययन की आवश्यकता नहीं रह जाती । संपूर्ण फारसी साहित्य में 'फिरदौसी' ही