पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१५७

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तसम्वुफ अथवा सूफीमत है। कामना या इच्छा से परम पुरुष कैसे बद्ध हुआ, इसके विवेचन की आवश्यकता नहीं। हमें तो देखना यह है कि अनेक का कारण या सृष्टि का उपादान क्या है। सूफियों के अध्ययन से अवगत होता है कि उनके सामने चित् , अचित् का झगड़ा न था। उनकी समझ में चेतन पुरुष से जड़ प्रकृति के उत्पन्न होने में कोई अपचन न थी। सत्कार्यवाद का उनके यहाँ वह महत्त्व न था जिसके कारण सांख्य द्वैत का प्रतिपादन करता है। विवर्त्त का भी वह बोध उनमें नहीं था जो सृष्टि को माया का प्रसार अथवा इन्द्रजाल समझते। उनमें विवत का जो आभास मिलता है वह स्वतंत्र चिंतन का परिणाम नहीं, वेदांत का प्रभाव है। इसलाम का अमोघ अस्त्र अल्लाह है। अल्लाह की शक्ति अपरिमित है । उसके 'कुन' में सारी शक्ति भरी है। वह यहच्छा के आधार पर अभीष्ट रचना कर सकता है। सृष्टि उसके 'कुन' का प्रसार है । बस जगत् की और चिन्ता व्यर्थ है। कुरान ने कुन के आधार पर सृष्टि की उत्पत्ति बताई और इसलाम ने आदम को अल्लाह का प्रतिरूप और इंसान को सृष्टिशिरोमणि माना । उसका काम इतने ही से चल गया । मुहम्मद साहब के अनंतर इसलाम में जो प्रश्न उठे उनकी चर्चा हम समय समय पर करते आए हैं । यहाँ हमें उस प्रश्न पर विचार करना है जो सृष्टि के संबंध में छिप गया था। इसलाम की दृष्टि में सृष्टि अल्लाह की क्रिया है। इस कृति की वास्तविक सत्ता क्या है ? इसको नित्य तो मान नहीं सकते ; क्योंकि इसकी नित्यता से अल्लाह की अद्वितीयता में बाधा परती है। निदान उसको अनित्य कहना ही इसलाम का निश्चय है। उसके विचार में अल्लाह के अतिरिक्त जो कुछ है वह सृष्टि है, पर सृष्टि नित्य नहीं, उत्पन्न है। सृष्टि की उत्पत्ति का कारण श्रास्मज्ञापन कहा गया है। वादियों में इस विषय का विवाद छिड़ा कि अल्लाह ने रचना का काम स्थगित कर दिया अथवा निस्य करता जा रहा है। इस प्रश्न का उचित समाधान न हो सका। विरोधी शब्दों के (१) दी हिस्टरी भाव फिलासकी इन इसलाम, पृ० १६२ ।