पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१५०

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अध्यात्म १३३ उसकी ओर से जो संदेश अरबों पर उतरे हैं उनके परितः परिशीलन से स्पष्ट होता है कि कुरान का अल्लाह साकार है, सगुणा है और शाश्वत है। अल्लाह के श्राकार का विवरण तो इसलाम में भी कभी कभी मिल जाता है। 'तजसीम' शब्द इसीका द्योतक है। स्वयं कुरान में अल्लाह के हाथ, नेत्र श्रादि की चर्चा है। जिन मनीषियों की पैनी दृष्टि में तजसीम का विधान खटका उन्होंने 'तंजीह' के आधार पर अल्लाह को अपवाद मान लिया। मीमांसकों में अल्लाह के स्वरूप के संबंध में जो वाद चले उनका परिणाम सूफियों के लिये अच्छा ही रहा। अवसर पाते ही सूफियों ने विवेक के आधार पर अल्लाह को वह रूप दिया जो इसलाम के प्रचलित स्वरूप से सर्वथा भिन्न हो गया है । सूफी 'तजसीम' और 'तंजीह' के फेर में न पड़े। उनके सामने तो 'जात' और 'हक' का प्रश्न था । मुसलिम धर्म- शास्त्रों में इस बात पर विशेष ध्यान दिया गया है कि कयामत के दिन अल्लाह का साक्षात्कार किस रूप में होगा। पर विज्ञ सूफियों की दृष्टि में कयामत कोई ऐसी ठोस चीज नहीं जिसके पहले अल्लाह का साक्षात्कार किसी को किसी दशा में होता ही नहीं । नहीं, उन्होंने तो डर कर सिद्ध किया कि अल्लाह वस्तुतः अंतर्यामी है और उसका सिंहासन भी हृदय ही है । हृदय को सदा स्वच्छ रखने से उसीमें उसका प्रतिबिम्ब बराबर पड़ता रहता है और इस प्रकार हम उसके वास्तविक स्वरूप से बराबर परिचित होते रहते हैं। अस्तु, कुरान में अल्लाह के जिस साकार स्वरूप का विवरण था उसके आधार पर उसकी वास्तविक सत्ता का परिचय दिया गया। परन्तु इस प्रकार अल्लाह किसी स्थल विशेष का निवासी कब तक सिद्ध किया जा सकता था ? स्वयं कुरान में ऐसे वाक्यों का अभाव न था जिनमें कहा गया कि अल्लाह पूर्व-पश्चिम उत्तर-दक्षिण क्या, सर्वत्र निवास करता है। जिधर देखो उधर उसका मुख है। (१) मूर्तियों का विध्वंस करनेवाला महमूद गजनवी कर्गमी संप्रदाय का भक्त था। अल्लाह के साकार स्वरूप में उसकी पूरी आस्था थी और वह बन्नत में अल्लाह का प्रत्यक्ष दर्शन चाहता था।