पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१४९

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१३२ तसस्वुफ अथवा सूफीमत गया है कि वे सृष्टि के प्रधान अंग हो गए हैं। उनकी देखादेखी मुहम्मद के उपासकों अथवा इसलाम के अनुयायियों ने मुहम्मद साहब को जो रूप दिया वह अल्लाह का कनिष्ठ रूप हो गया और किसी प्रकार भी केवल दूत वा संदेशवाहक तक ही सीमित में रह सका । तर्क एवं दर्शन के द्वारा मसीह की भांति ही मुहम्मद को भी अल्लाह का अंग बनाया गया। मुहम्मद साहब के इस उत्कर्ष में मसीही मत का जो हाथ रहा उसका उल्लेख प्रायः किया जाता है। दमिश्क के जान ( मृ० ८४२ ) को उसका बहुत कुछ श्रेय दिया जाता है, परंतु विवेचन की जिस पद्धति का यहाँ समादर हुआ है उसके अनुसार इस उत्कर्ष की मूल प्रेरणा किसी आर्य-दर्शन से ही मिल सकती है। आर्यो में दूत का विधान नहीं है। उनको दृष्टि में जीव, जगत् और ईश्वर का प्रश्न रहता है, कुछ किसी रसूल वा वंश विशेष का नहीं । साथ ही उनमें अवतार की जो भावना है उससे एक ओर तो रसूल का काम पूरा हो जाता है और दूसरी और जीवात्मा और परमात्मा का समन्वय भी बड़ी सरलता से सघ जाता है। उन्हें किसी रसूल वा मध्यस्थ की आवश्यकता नहीं होती और 'पुत्र' का पवित्र काम भी स्वयं पिता ही कर लेता है। अर्थात् स्वयं आता, किसी को भेजता नहीं है। हाँ, तो मुहम्मद साहब की वास्तविक सत्ता अल्लाह पर निर्भर थी। अल्लाह के उत्कर्ष के साथ ही रसूल का उत्कर्ष भी ठीक उसी प्रकार होता रहा, जिस प्रकार जल के साथ जलज का होता है । किन्तु कठोर इसलाम में अल्लाह की जो भावना थी वह तसन्युफ में ठीक उसी रूप में बनी न रह सकी। सूफियों ने चिंतन, अनु- शीलन अथवा अनुकरण के आधार पर अल्लाह के जिस स्वरूप का दर्शन किया उसके भीतर सृष्टि और मुहम्मद किवा जगत् और जीव की उलझन भी कुछ सुलझी हुई दिखाई पड़ी। इसलिये सबसे पहले अल्लाह की भावना की परीक्षा की गई। अच्छा, तो हम अल्लाह के विषय में पहले ही कह चुके हैं कि वह वास्तव में एक परम देवता था। इसराएल की संतानों में जो स्थान यहोवा का था वही इसमाईल के वंशजों में अल्लाह का । अल्लाह के जो नाम कुरान में आये हैं और