पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१३९

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तसव्वुफ अथवा सूफीमत मानते हैं । अब आलंबन के संबंधी को लीजिए । सूफियों की धारणा है कि प्रियतम अपने आप तो नहीं पाता पर अपने रसूलों को भेजता है, जो दूत वा दूती का काम करते हैं । किताबें उसकी वह देन हैं जो सीने के घाव को सदा हराभरा रखती हैं और कभी उसको मुरझाने नहीं देती। प्रकृति से उन्हें एक और प्रेरणा मिलती है । सूफी देखते हैं कि प्रकृति उसके विरह में कहीं सूख रही है, कहीं रो रही है, कहीं चक्कर काट रही है, कहीं उन्मत्त है, कहीं मूर्छित है, कहीं (स्वप्न में उसका साक्षात्कार कर ) हँस रही है, कहीं रूठ रही है, कहीं लहलहा रही है, कहीं लपट रही है; कहीं कुछ कर रही है कहीं कुछ । संक्षेप में, प्रकृति इनके सामने उन फलों को भोग रही है जिनकी आकांक्षा उनमें जाग रही है । उनकी लालसा और उनकी रति यह देख देखकर तड़प उठती है, लंबी साँस लेती है, और उसके विरह में जल उठती है। कभी कभी उसकी झलक पा उसे कुछ संतोष होता है और वह खिल पड़ती है। किंतु फिर उसी वियोग में चक्कर काटने लगती है। सूफियों के अनुभाव बड़े विकट होते हैं। प्रियतम के लिये सूफी क्या नहीं. करते ? उसके लिये आँख बिछाते हैं, पथ बुहारते हैं, सर के बल चलते हैं, आँसुओं की नदी बहाते हैं, पहाड़ खोदते हैं, व्रत रहते हैं, उपवास करते हैं, रण ठानते हैं, आह से एक नया प्रासमान बनाते हैं, रकीबों को कोसते हैं, शरीर पर घाव करते हैं, कहाँ तक कहें कलेजे का कलेवा भी करने लग जाते हैं। उनकी यह अर्चना फूल-पत्तों की नहीं होती; उसमें प्राण चढ़ाए जाते हैं। कभी कभी सूफियों के कार्य इतने भीषण और बीभत्स हो जाते हैं कि उनसे सुरुचि को धक्का लगता है। पर उन्हें इसकी क्या चिन्ता ! उनको तो किसी प्रकार उसे रिझा कर, उसमें दया उत्पन्न कर उससे बस एक बोसा प्राप्त कर लेना है ! आखिर दया उत्पन्न कैसे हो ? सूफियों का यह अभिलाष सामान्य नहीं होता, उनको तो प्रियतम के लिये मर मर कर जीना पड़ता है । चिंता, स्मरण, कीर्तन, गुणगान आदि तो सभी कर लेते हैं । सूफियों की इसमें विशेषता क्या ? तो सूफियों का इश्क उद्वेगसे रंग लाता है और मरण में ही खरा उतरता है। प्रेम की प्रमत्त दशा में सूफियों ने जो कुछ