पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१२४

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आस्था कुछ काल के लिये ही सही, मुक्त कर अनुपम उल्लास का स्वर्ग दिखाती है । उद्भव के प्रकरण में हमने इसी उल्लास का व्यापक राज्य देखा है। सूफी इसी उल्लास के कारण शराब को प्रतीक मानते हैं। सूफियों का साक्री जिस शराब का पान कराता है वह अमृत है । उसके प्रास्वादन से शाश्वत आनंद मिलता है। साकी शान से शराब का वितरण करे, इसलाम की विधियों का उल्लंघन करे और हराम के प्रचार में लगा रहे और शेख साहब चुपचाप इसे देखते रहें यह संभव नहीं । शेख, जाहिद, काज़ी और मुल्ला प्रादि धर्मवजी सदा से हाथ में इसलाम का झंडा लिये सूफियों के प्रतिकूल आंदोलन करते रहे और क्रूर शासकों से उनको जब तब कठोर और भीषण दंड भी दिलाते रहे, पर सूफियों को कभी उनसे भय न हुआ । वे सदा उनकी भर्सना करते रहे । परिस्थिति यहाँ तक उनके प्रतिकूल थी कि उनको उक्त बातों के कारण प्राणदंड तक भोगना पड़ा, किंतु उनके प्रेम और साकी ने उनमें इतना भाव भर दिया था कि उनको मुरा और साकी के अतिरिक्त और कुछ दिखाई ही नहीं देता था । सूकियों ने शेख साहब को कर्मकांडी ढोंगी, पाषंडी, आदि न जाने क्या क्या कहा । यहाँ तक कि तसव्वुफ में यह रूढ़ि सी हो गई कि शेख, मुल्ला, जाहिद आदि इसलाम के धुरंधर उपासकों की खूब खबर ली जाय और प्रेम एवं सुरा के प्रसंग में उनको किसी शैतान से कम न समझा जाय । फलतः शेख साहब हमजोलियों के साथ सूफी-साहित्य में पाषंड के प्रतीक बने और शराब को हराम माननेवाले मुसलिम कवि भी काव्य में सूफियों की देखा-देखी उनकी भर्त्सना करने में मग्न हुए।. शेन शाइरी में सूफियों के शिकार बने और उनको दुर्गति भी खूब हुई। सूफियों के मुख्य प्रतीकों का परिचय मिल गया। उनके अन्य प्रतीकों के विवरण की आवश्यकता नहीं। बस इतने से ही उनका महत्त्व स्पष्ट हो जायगा। जब माशक प्रतीक है तब उसका नखशिख भी प्रतीक के अंतर्गत ही समझा जायगा। उसके अंग-अंग प्रतीक होगे। उनसे किसी न किसी तथ्य का उद्घाटन किया जायगा। यही बात साकी के संबंध में भी है। साक्री की प्रत्येक वस्तु को प्रतीक के भीतर माना जायगा और उनके आधार पर अमृतत्व की व्याख्या की जायगी।