पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/११३

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तसव्वुफ अथवा सूफीमत करते थे। संगीत के विषय में हम पहले ही कह चुके हैं कि उनमें उसकी पूरी प्रतिष्ठा थी। सुरा तसव्वुफ में आज प्रतीक मानी जाती है। इसलाम में वह हराम है पर सूफियों में ऐसे जीवों की कमी नहीं जो उल्लास के लिये आज भी उसका सेवन करते हैं। यह तो प्रत्येक के अनुभव की बात है कि बहुत सी ऐसी चीजें हमारी आँखों के सामने ही मौजूद हैं जिनके सेवन से हमारी चित्त-वृत्तियाँ कुछ से कुछ और ही हो जाती हैं। मादक द्रव्यों का प्रयोग फक्कड़ी लोग व्यर्थ ही नहीं करते। उनसे उनके फक्कड़पन में मदद मिलती है और उनका उल्लास भी चोखा हो जाता है। साध्य की साधना के अनुसार साधक मादक द्रव्यों का प्रयोग सदा से करते आ रहे हैं। पतंजलि के योगसूत्र में भी ओषधि का विधान है। तात्पर्य यह कि सूफियों की मंडली में कुछ ऐसे उपचारों का स्वागत बराबर होता रहा है जिनसे किसी उल्लास में सहायता मिलती है । मस्ती में उन्मत्त जीवों को बहुत दूर की सूझती है और वे उसी में अल्लाह की झाँकी भी देखते हैं । निदान सूफियों में कीमिया, नजूम आदि का प्रचार उल्लास और करामत की दृष्टि से हुआ। फलतः ये उपचार भी सूफियों के साधन बन गए, पर उनको तसव्वुफ में पूरी प्रतिष्ठा न मिली। नकली सूफी उनके फेर में पड़े रहे परन्तु असली सूफी कभी उनके चक्कर में न आए और सदा उनसे दूर रह अपना अलग विरह जगाते रहे। उनको किसी बाहरी उपचार से कुछ भी लेना-देना नहीं रहा। वे तो सदा अपने राम में मस्त रहे । (१) मादक द्रव्यों के सेवन से जो प्रभाव चित्त-वृत्तियों पर पड़ते है उनका निदर्शन श्री लूबा ने बड़े ही मार्मिक ढंग से किया है और उन्होंने एक प्रकार से यह सिद्ध भी कर दिया है कि प्रियतम के साक्षात्कार में बहुत कुछ अंश इन कृत्रिम उपायों का रहता है। देखिए 'दी साइकालोजी पाव रेलिजस मिस्टिनीम' अध्याय ५ । (२) कुलार्णवतंत्र में मधुपान के सम्बन्ध में कहा गया है-“मन्त्रार्थस्फुरणार्थाय मनसः स्थैर्यहेतवे । भवपाशनिवृत्त्यर्थ मधुपानं समाचरेत्" । (पं० उ०,८७) (३) जन्मौषधिमन्त्रतपःसमाधिजाः सिद्धयः । ४. १.