पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१११

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तसव्वुफ अथवा सूफीमत सामान्यत: नासूत नरलोक, मलकूत देवलोक, जबरूत ऐश्वर्थलोक एवं लाहूत माधुर्यलोक है। हाहूत को चाहें तो सत्यलोक कह सकते हैं । साधक इन्हीं लोकों में विराम करता हुआ पर ब्रह्म में लीन होता और संसार के बंधन से मुक्त हो जाता है। इस दृष्टि से इन लोकों की तुलना क्रमशः जाग्रत, म्बन, सुषुप्ति और तुरीया- वस्था से की जा सकती है। हाहृत को तुरीयातीत बद सकते हैं। मोमिन शरीअत का पालन कर नासून में विहार करता है, मुरीद तरीकत का सेवन कर मलकूत में विचरता है, सालिक मारिफत का स्वागत कर जबरूत में विराम और आरिफ हकीकत का चिंतन कर लाहूत में तल्लीन होता है। यही सूफियों की पराकाष्ठा और तसव्वुफ की परागति है। कुछ लोग झोंक में इसके भी आगे पहुँच कर हाहूत लोक में विहार करते हैं । पर सामान्यतः सूफी हाहृत के कायल नहीं हैं। सालिक को अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिये कतिपय भूमियों को पार करना पड़ता है । सूफी उन्हीं को 'मुकामात' कहते हैं। मुकामात के संबंध में यह स्मरण रखना चाहिये कि उनकी कोई निश्चित सीमा नहीं है । फिर भी सामान्यतः सूफी भी 'सप्तभूमयः' के कायल हैं। अत्तार ने भी अपनी प्रसिद्ध मसनवी 'गतिकुत्तैर' में सप्तभृमियों का परिचय दिया है। हमारी समझ में सूफियो के वास्तविक मुकामात वे नहीं हैं जिनको लोग तोबा से प्रारंभ कर मुहब्बत में समाप्त कर देते है। हमने ऊपर यह स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है कि शरीअत के आधार पर ही जो अल्लाह की मुहब्बत चाहते हैं उन्हीं के लिये उक्त मुकामात ठीक हैं। सूफियों के लिये वस्ल अथवा फना जरूरी है, मुहब्बत या सामान्य संबंध नहीं। अतएव सूफियों के मुकामात क्रमशः अबूदिया, इश्क, जहद, स्वारिफ, वज्द, हकीक और वस्ल हैं। अब्द प्रियतम की खोज में उस समय निकल पड़ता जब उसमें मुर- शिद इश्क की चिनगारी डाल देता है। आशिक अपने माशूक को अपनाने के लिये अपनी चित्त-वृत्तियों का निरोध या जेहाद करता है। वह जहद की भूमि पर पहुँच जाता है । वृत्तियों के निरोध से प्रज्ञा का उदय होता है और वह म्वारिफ के मुकाम (१) मुसलिम थियालोजी पृ. २३४ ।