पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१०१

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८४ तसव्वुफ अथवा सूफीमत साहब ने जो सलात नामक रसायन तैयार किया उसके सेवन से स्वर्ग मिल सकत हो, जीवन सफल हो सकता हो ; पर उससे मानव-हृदय की प्यास नहीं बुभ सकती। सलात तो एक ऐसा अनुष्टान है जिसे समाप्त करने पर ही हम आनंदमर जीवन प्राप्त कर सकते हैं ; स्वयं उसके आचरण में हमें आनंद नहीं मिल सकता। सलात के विश्लेषण से पता चलता है कि उसमें अल्लाह की प्रशंसा, मुहम्मद का गुण-गान आदि सभी कुछ शांति, सफलता, सदाचार और संरक्षण की दृष्टि से किया गया है कुछ साक्षात्कार की लालसा या सत्य की जिज्ञासा से नहीं । अर्थात सलात के उपासक आर्त और अर्थार्थी हैं, प्रेमी या जिज्ञासु नहीं । अस्तु, सलात में सत्त्व की शुद्धि के लिये जो सामग्री प्रस्तुत की गई है वह हृदय को माँज सकती है, किंतु उसको प्रांजल तथा श्रानंदघन नहीं बना सकती । इसके लिये तो प्रेम और संवेद की आवश्यकता होती है जो सूफियों के पास हैं, कर्मकांडी में कहीं नहीं । सलात में समष्टि एवं व्यष्टि, समाज एवं व्यक्ति का समन्वय है। सलात का आचरण अकेले घर पर भी किया जा सकता है और संघ बाँधकर मंडली में भी। जुमा का समारोह जातीय एकता का आधार है। सलात के संघबद्ध विधान का इमाम नायक है। इमाम सलात का संचालक होता है। उसकी मर्यादा औरों से कुछ भिन्न होती है । वस्तुतः वह मुसलिम सेना का सेनानी है। संघटन की सीख को छोड़ कर यहाँ सलात के संबंध में टौंकने की बात यह है कि यद्यपि उसके समय ठीक ठीक नियत हैं तथापि उसका उपयोग किसी भी समय किया जा सकता है। नित्य. नैमित्तिक, काम्य आदि भेद सलात में भी पाए जाते हैं। विशेष विशेष अवसरों पर विशेष विशेष कामना से सलात का प्रयोग किया जाता है। सलात के इस विस्तार से पता चलता है कि अल्लाह की आराधना किसी भी समय की जा सकती है। हाँ, नियमित वा नित्य सलात की उपेक्षा नहीं की जा सकती। उचित समय पर उसका पालन करना ही होगा। सलात में समाज की मंगल-कामना भी की जाती है । 'प्रणिधान' तो सलात के पद पद में भरा है । इसलाम के भीत उपासक अल्लाह की कृपा के कातर कांक्षी है। इससे आगे बढ़ने की उनमें शक्ति नहीं । सलात आराधना के अतिरिक और कुछ नहीं।