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वक्तव्य

हिन्दी-साहित्य में कितने ही अच्छे कवि हो गये हैं। पर भारत की दुरवस्था से आज दिन उन कवियों की सुन्दर कविताएँ अप्राप्य सी हैं। इससे हिन्दी साहित्य को बड़ी क्षति पहुंच रही है, क्योंकि हमारा दृढ़ विश्वास है कि बिना प्राचीन साहित्य का भली-भाँति,अध्ययन किये यदि कोई साहित्य क्षेत्र में अवतीर्ण होता है तो उसका सा यक ज्ञान अधूग ही रह जाता है। यदि कोई प्राचीन कवियों प्राचार्यों आदि के ग्रन्थों को न पढ़े तो वह किसी भी भाषा का अच्छा ज्ञाता नहीं हो सकता, क्योंकि साहित्य ही भाषा का जीवन है। वह चाहे प्राचीन हो चाहे नवीन।

जिन ठाकुर की कविता का संग्रह प्रकाशित हो रहा है वे प्राचीन समय के एक ऊँचे कवि थे। उन्होंने कोई काव्य ग्रन्थ लिखा है या नहीं यह दैव जाने पर उनकी कविता जो अवतक मिली है उनके महत्व को प्रत्यक्ष बता रही है। ठाकुर स्वयं कहा करते थे “देखन चाही मोहिं जौ मम कविता लखि लेहु" ठाकुर के जो स्फुट छन्द प्राप्य हैं वे उनके भावुक-कवि-हृदय, ऊँचे-विचार, स्पष्ट वादिता, भाषा सौष्ठव, पदलालित्य और "उचित प्रयोग आदि की बारम्बार बुलन्द आवाज से दुहाई दे रहे हैं। कवि में क्या शक्ति होती है, वह क्या कर सकता है यह भी ठाकुर के जीवन को कतिपय घटनाओं से पाठकों को विदित हो जायगा । यहाँ पर हम केवल इस बात पर विचार करेंगे कि अब वैसे कवि क्यों नहीं होते?

आधुनिक समय में कवियों के अभाव में देश और समय के साथही साथ प्राचीन काव्य की पठन पाठनाशिरुचि की अनाशक्ति भी एक कारण है। प्राचीन काप पाउन