तान लगे तरवार लगे बरछी हु लगे लगे तीर अभ्यारो।
बज्र को घाव लगे ते जिये औजियै विष बाउ पिये मतवारो॥
ठाकुर जीवत सर्प डसो अरु जोषत है नरसिंह विदारो।
काल असे पै जिये जूजियै न जिये इक नैन कटाक्ष को मारो॥
बांकी बनैत पटेत दिवानिन है कमनैत बड़ी सुधरै री।
देत न पीठ बसीठ बसीठिन चोहत देन सुदीठि करे री॥
ठाकुर चोट न चूकत कैसहं ऐसहुं होत हैं ढीठ करे री।
रोकरी रोक करैयां कहा कजरारे कटाक्ष कटा से भरेरी ॥२८॥
मरद मुछारे गभुवारे जौन होनहार,
तेऊ झूमि-भूमि मतवारे से परे हैं।
कोऊ घाट बाट कोऊ चौहट अथाइन में,
कोऊ पौर लोरिन में ऊसई धरे रहैं।
लागत ना दारू उपचार करि हारे बैद,
ठाकुर कहत ऐसे हिय में अरे रहैं।
एक दस सौ लौ औ सहस्र लौ कहां लौं कहौं.
आंखन के मारे कैयो लाखन डरे रहैं ॥३०॥
बाँके नैन बान मारि घायल कियो री मोहि,
दायल दगा के देत हाय जिन्हें गाइये ।
एरी बीर प्रीति को न दूसरो तबीब कोऊ,
जाके द्वार धाय जाय दरद सुनाइये ।
ठाकुर कहत कहूँचोट को न चिन्ह कछू,
बिन देखे नैन चैन पलहू न पाइये ।
एक जागा होय तहां औषधि लगाऊं बीर,
रोम रोम पीर कहां औषधि लगाइये ॥३१॥