दौलत जो दीजौ तौ न दीजी कछु सोच फिर,
एतौ बर दीजो मेरो जनम सुधारियो ।
संग परबीनन को दीनन पै दाया नित,
प्रेम मैं मगन ऐसे दिन जु निवारियो ।
ठाकुर कहत जो अधीन भयौ रावरे तो,
जासों जैसौ नातो तासों तेसौओर पारियो।
ऐहो ब्रजराज तेरे पाँइ कर जोरे गहों,
प्रानहूँ नजर पै न नियत बिगारियो॥ ९ ॥
ओ सुख देइ तो देह दई दुख देइ न देख हिये डरने है ।
होत न काहू की नेकी करी अब यो निरधारि. हिये धरने है।।
ठाकुर भाँतिन भाँति अधीन कैदीन है आइ.पयो सरने है।
को करि सोच वृथा ही मरै हरि होने वही जो तुम्हें करने है १०
हारि पथो लरि है बलहीन सो ग्राह ते लै गज तू जितयो रे।
फेर सुम्यो प्रहलाद के साँकरे आवन को न खिनौ बितयौ रे॥
ठाकुर हौं अजामेल ते आगरौ पापी उजागरौ यो हितयो रे।
रावरो ओर चितोत चितोत किते दिन बोते नतूंचितयो रे ११
सीख लीम्हों मीन मृग खंजन कमल नैन,
सौख लीन्हों यश औ प्रताप को कहानी है
सीख लीन्हों कल्पवृक्ष कामधेनु चिन्तामणि,
सीख लीन्हो मेर औ कुबेर गिर आओ है।
ठाकुर कहत या की बड़ी है कठिन बात•
पोको नहीं भूति कहूँ बाँधि है।