यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
ठाकुर उसक।
- -
युगुल चरण बंदना
(घनाक्षर)
झूम देह झूला में मुलावती जसोदा माय,
चूम चूम बदन बलैया लेत प्यारे की।
झीनी लोहै मैंगुली औ झालर मँडूली लसै,
आँखिया रसीली नीकी कंज सी सुखारे की।
ठाकुर कहत चित चोर चितवन चारु,
रूप में मिलतत्यौं किलोलें किलकारे की।
कंजडू ते कोरी जिन्हें बंदत महेश अज,
लागै सबै या या गोविंद गभुवारे को ॥ ३ ॥
मेहदी लपेटे लाल लाल बस कीन्हें निज,
छीगुनी अनौटा नगजटित संधारे हैं ।
दीपति के दीप तरवान को बखानै कौन,
पांचो अँगुरिन मैन सर पाँचौ पारे हैं।
ठाकुर कहत ठकुराई के निकेत रस,
रूप के भंडार निरधार निरधारे हैं
पंकज बरण अशरण के शरण राधे,
रावरे चरण सुख करन हमारे हैं॥४॥
ईश महिमा'
(घनाक्षरी)
एकै खिन खिन माँझ पावै पद साहिबी को,
एकै दिन खिन माँहि होत लटपट हैं।'
एकै जीवं जीवत हैं उमर अंदाज भर,
एकै जीव होते हिंस होत चटपट हैं ।