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ठाकुर- ठसक
गणेश बंदना
( धनाक्षरी)
प्रणष प्रसिद्ध भादि मंगल महोदधि सो,
जोई पर ध्यावै तासु बेस रखधारो है
बुद्धि को भंडार अवतार करतार हू को,
विद्या को सिंगार सदा सुख देनवारो है
ठाकुर कहत महा छलियान छलिये को,
दुःख दल दलिबे को दिग्गज दैतारो है।
शंभु को दुलारो गिरिजा कोप्राण प्यारो सदा,
टेढ़ो सूंडवारो.सोई साहेब, हमारो है॥
राम बंदना
(घनाक्षरी)
राम मेरे परिखत अखंडित सुदिन सो,
राम मेरे गुरु जप मेरे राम नाम हैं ।
राम नाम गावहिं राम नाम भ्याक्तहि,
राम राम सोचत करत साठो जाम हैं।
ठाकुर कहत साँची आस मोहिं राम ही की,
रामही से काम धन धाम मेरो राम हैं।
राम मेरे वैद विसराम मेरो रामं सांचो,
राम मेरी ओषद जतन मेरे राम हैं॥२॥.