सावन की तीज तजबीज के बसन सूहे,
पहिरे बिमल जामें सौरभ झकोरे हैं।
ठाकुर कहत देत दरस दयाल भये,
देखत देवैयन के लेत चित चोरे हैं।
बोलती हैं मोएँ होती घनन की घो” बीर,
दोनौ गठ जोरे आजु भूलत
हिंडोरे हैं॥
तात्पर्य यह कि जब हम इनका उस समय के अन्य कषियों से मुकाबिला करते हैं तब हम भाषा की सरलता, सरसता, बोल चाल, अनूठी उक्ति और साधारण कहनि में इन्हीं को सबसे बढ़ कर पाते हैं और विवश होकर इन्हें उस समय का कविराज कहना पड़ता है।
संवत् १८८० के लगभग इनका देहान्त होना पाया जाता है। इनके भाई मानिक लाल की एक लड़की बिजावर में ला० हीरालाल को व्याही थी जिनके प्रपौत्र बकसी गुलाब सिंह जी खासकलम अभी बिजाधर में वर्तमान है। ठाकुर के पुत्र का नाम दरयाव सिंह था।ये भी कवि हुए। इनका उपनाम 'चातुर' था। इनका भी जीवन चरित्र हमने तय्यार कर लिया है समय आने पर प्रकाशित किया जायगा । चातुर के पुत्र शंकर प्रसाद हुए। ये भी कवि हुए । इनकी विधवा स्त्री आज दिन बिजावर में वर्तमान है। पुत्र कोई नहीं । ठाकुर कवि का वंशवृक्ष जो हमको बिजावर निवासी लाला हरसेवकलाल से मिला है नीचे लिखा जाता है।
इस जीवनी के लिखने में लाला देवीप्रसाद जी हेडमास्टर बिजावर ने हमें विशेष सहायता दी है अतएव हम उनको विशेष धन्यवाद देते हैं।