अंचल ओटदै चोट करै अरु ओट अटारी के चंचल गावै॥ एक पलो बिसरैन को अरु कोटि कला करि जो ललचावै। भौखिन भावै हिये लगि आवै पै प्यारी परोसिन हाथ न आवै॥ आवै चली गजचाल सौबाल बिसाल सरूप कीरासितुषी सी। ओज मनोज की मौज भरो तन जानि परै सब भांति पुषीसी॥ ठाकुर को उपमा बरनै सब ओर निहारत एक रुषी सी । रासै खुशी मन यारन के जजमानिनी बानिनी चंदमुषी सी ॥
१२-त्योहारों और अन्य अन्य आनन्द के समयों पर जो कविता ठाकुर ने रची है बहुत उत्तम है। अखती, फाग, बसंत, दशहरा,हिंडोरा इत्यादि समयों की कविता बहुत सुंदर है। बानगी देखिए।
अखसीरची राधिका मोहन सो बधूको हठि नाम लिवावती हैं। झहरावती भौंह झुकावती फेरि लिये कर लौद खिझावती हैं । कहि ठाकुर काम गुरू के कहेते कहौ जू कहोजू सुनावती हैं। रसरीति के प्रीति के प्रीतम को बिसरे मनोअंक पढ़ावती हैं लांबी लचकारी लौद लीन्हे ही गोपाललाल,
सो न घालि दीजी घाले घनो रस घटहै।
छुवै जो जैहे काहू ब्रज बनिता नबेली अंग,
ऐंड़ को तिहारी कान्ह एकह न सटहै ॥
ठाकुर कहत टेक एकडू न है धरी,
संग में सहेली एक एक ते विकट है।
- बैसाष शुक्ल३ (अक्षय तृतीया) को बुन्देलखंड निवासी नर नारी
सज बज कर नगर के बाहर बट पूजन को जाते हैं और एक दूसरे पर चमेली या गुलाब की छडी छालते हैं, मर्द से पत्नी का और स्त्री से पति का नाम लिखाते हैं यह त्यौहार अन्नती के नाम से प्रसिद्ध है