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कितनी सत्यता है । ठाकुर ने साफ कह दिया कि मैं उसके सौन्दर्य का उपासक हूँ और अन्य बात से मुझे कुछ सम्बन्ध नहीं। मेरी इस बात के साक्षी नारायण हैं । महाराज जी को विश्वास नहीं हुआ। दंड स्वरूप सात रोज तक अपनी निज ज्योढ़ी में नज़र कैद रहने की आज्ञा दी । कहते हैं जिस दिन यह आधा दी गई और ठाकुर ड्योढ़ी से बाहर जाने से रोके गए, अकस्मात उसके दूसरे दिन वह कुआँ जहाँ वह स्त्री पानी भरने जाया करती थी और जहाँ जाकर ठाकुर कवि उसके दर्शन किया करते थे सूख गया। अकस्मात कुँआँसूख जाने की चरचा सारे शहर में फैली। लोग कारण सोचने लगे। उस स्त्री ने अपने पति से कहा कि ठाकुर जी पर आपने निर्दोष संदेह करके उन्हें नज़र कैद कराया है इसी कारण यह कुँओं सुख गया, यदि वे रिहा न किए जायगे तो सात दिन में कुल शहर के कुएं सूख जायगे । पति ने समझा कि यह मेरी स्त्री स्वयं खोटी है, इस बहाने अपने जार को रिहा कराना चाहती है। ऐसा विचार उसने उसके कथन पर ध्यान न दिया। दूसरे दिन उस मुहल्ले भर के (जिस मोहल्ले में यह स्त्री रहती थी) कुल कुँएँ सूख गये। तब तो उसके पति को. विश्वास आया, जाकर संब हाल महाराज को सुनाया। ठाकुर रिहा किए गए । दूसरे ही दिन संबं कुंएं ज्यों के त्यों जल से परिपूर्ण हो गए और ठाकुर की अमलता प्रमाणित हो गई । ठाकुर रूठकर बिजावर से चले गये और फिर बिजावर कभी नहीं गए । कहते हैं कि अपने सुच्चे रूप रसिक के वियोग से सधवा होने पर भी उस स्त्री ने मरते दम तक कभी श्रृंगार न किया।