उठाती थीं। महाराज साहब चाहते थे कि कुछ देर तक तो
भला बूंघट खोल कर हमसे प्रेमालाप किया करें परन्तु महा-
रानी जी न मानती थीं। किसी समय महाराज जी ने बात-
चीत में यह हाल ठाकुर कवि को सुनाया। ठाकुर ने तुरन्त
निम्न लिखित सवैया बनाकर महाराज साहब को दिया और
कहा कि आज रात को आप स्वयं यह सवैया पढ़कर महारानी
जी को सुनाइएगा।
यौं तरसाइबो कौने बदो मन तो मिलिगो पै मिलै जल जैसो। कौन दुराव रहो उनसो जिनके संग साथ करौ सुख ऐसो। ठाकुर या निरधार सुनो तुम्हें कौन सुभाष परो है अनैसो प्राणपिया घट में बलि के हंसि के फिरघूघट घालिबो कैसो।
कहते हैं कि महारानी साहब ने इस कवित्त के लिये ठाकुर को बहुत कुछ इनाम दिया था और उतनी अधिक लज्जा करनी भी छोड़ दी थी । महाराजा साहब के बैकुटबास होने पर यही महारानी जी सती हुई थीं। पन्ना में इनका समाधिस्थल अब तक वर्तमान है।
५-ठाकुर की सौन्दर्योपासना और हँसोड़पन निम्न लिखित वार्ताओं से प्रगट होता है।
कहते हैं कि जिस समय ठाकुर बिजावर में रहते थे उन दिनों एक अत्यन्त रूपवती मुनारिन भी वहां थी। उसके सौ. न्दर्य के आप बड़े उपासक थे । जिस दिन किसी कारण उसके दर्शन म पाते उस दिन बड़े उदास रहते । गली, घाट जहां कहीं वह मिल जाती हाथ जोड़कर दंडवत करते और एक कवित्त उसी समय उसकी रूप छुटा पर बना कर तैयार