खतरो म सेनना उस पसद था । जब वह जह पर उमने साथ जाती थी तो उस लिए एष मुसीवत बन जाती थी । समुद्र की बड़ी बड़ी लहरो से टकरातीभिती वह दूर तक निकल जाती थी और उसको हमेशा इस बात माघढका रहता था कि कहीं यह डबन जाए जब वापस माती तो उसका गरोर नीना और घावास भरा होता था , लेकिन उसे इमली कोई परवाह नहीं होनी थी ।
मोजल मागे मागे थी और प्रिलोचन उमर पीट-पीछे डर डर इधर उधर दसता चल रहा था कि वही उममी बगल म से कोई छुरीमार न निक्स प्राप
महता मोजल रव गई । जय पिलाचन पास माया तो उमन उसे समझान के स्वर में कहा डियर त्रिलोचन, इस तरह डरना अच्छा रही । तुम डरोग तो जरर पुछ न कुछ हार रहगा । सच पहती है, यह मरी आजमाई हुई बात है । प्रिलोचन चुप रहा ।
जब व उम गती को पार कर द्वारी गली म परच , जो उस मुहल्ले पो पार निकलती थी , जिसम कृपान और रहती थी तो मोजेल चलन गलत पदम र गद कुछ दूरी पर बटे इनमीनान म मारवाडी मी दुनान लूटी जा रही थी । एक क्षण के लिए उमन मामल को समझने की कालिपी और प्रिलोचन स कहा कोई बात नहा - पालो प्रामा ।
दोना चलन लगे । एक मामी जो गिर पर यहत बडी परात उटाए चला पा रहा था त्रिलोचन म टकरा गया पगागिर गदाउरा भादमा न प्यास म चिन की मार दसापमारम हाता था कि गिरा है । उस पारमीन जल्लीम अपन न म हाय द्वारा दिमागरमा गई सदगडानी हा माना नाम पर हा समन जोर स उगमा भी बाधा रिया पौरनरम्परमया, या परनाहै - अपन भाई मारता
म ममात्री बनानका माना है कि पितापन पी भार गुरीराम माम पर और गदागर शिर पर ।
मामीन ना मग माहामारा लिया और सरदारा म मारा पार दगा पिसभाम पर पानी शमी ग उगली
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