उसरे ऊपर पा गिरी। जब विलोचन सभला तो मोजेल उमके ऊपर थी, कुछ इस तरह कि उनका लम्बा चौगा ऊपर चढ़ गया था और उसरी दा नगी, बडी तगडी टार्गे उसके इधर उधर थी और जब त्रिलोचन ने उठने की कोशिश की ता वह बौखलाहट म कुछ इस तरह मोजेलमारी माजल में उलमा, जैसे यह मावुन की तरह उस सार बदन पर फिर गया हो। त्रिलोचन ने हाफत हुए बडे गिष्ट गन्दा म उमम क्षमा मागी। मोजल न अपना चागा टोर दिया और मुस्करा दी, यह सडाऊ एक्दम कण्डम चीज है । और वह उतरी हुइ बडाऊ म अपना प्रगूठा और उसके साथ वाली उगली माती हुई कारीडोर स बाहर चली गई। त्रिलोचन का खयाल था वि मोजेल म दोस्ती पैदा करना शायद मुश्किल हो, लकिन वह बहुत ही थोडे समय म उसस घुलमिल गई। हा, एक बात थी कि वह वहुत उद्दण्ड और मुहजोर थी गौर विलोचन की कुछ परवाह नही करती थी । वह उसमे खाती थी, उसस पीती, थी उसके साथ सिनमा जाती थी। मारा-माग दिन उसके साथ जुहू पर नहाती थी, लेकिन जब वह वाही और होठो मे कुछ प्रागे बढना चाहता तो वह उस डाट देती। कुछ इस तरह उस धुडक्ती कि उसके सारे म मुवे दाढी और मूछी म चकार काटत रह जाते। त्रिलोचन को पहले किसीवे साथ प्रेम नही हुआ था। लाहौर में, वर्मा मे, सिंगापुर म वह लडकिया कुछ समय के लिए खरीद लिया करता था। में कभी स्वप्न मे भी सयाल न था कि वम्बई पहुचत ही वह एक बहुत ही अल्हड विस्म की यहूदी लरकी ये प्रेम मे गोडे-गोड धस जाएगा। वह उसस कुछ विचित्र प्रकार की विमुखता बरतती थी। उसके कहन पर तुरत सा धजकर सिनमा जान के लिए तयार हो जाती थी, लेकिन जब व अपनी मीट पर वठते तो इधर उधर वह निगाह दौडाना शुरू कर देती। यदि कोई उसका परिचित निकल ग्राता तो जोर से हाथ हिलाती और गिलोचन में पूछे विना उसकी बगल में जा बैठती। होटल म बटे हैं। गिलोचन ने मोजेल के लिए विशप प स उमदा खाने मगवाए हैं, लेकिन उस अपना काई पुराना दोस्त दिखाई पड़ गया है. मोजेन ] 83
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