जब मसऊद दुकान के सामन से निकल रहा था तो उसके मन में इच्छा उत्पन्न हुई शिगोश्त को, जिसम मे घुमा उठ रहा था, छूकर देखे । अन- एव उसने प्रागे वटवर उगली से वारे के उस भाग का छूकर देखा जो अभी तक फरक रहा था। गोल गम था। मसऊद की ठण्डी उगली को यह गर्मी बहुत भली लगी । यसाई दुकान के भीतर छुरिया तज करन में व्यस्त था अतएव मसऊट ने एक बार फिर गोश्न को छूकर देखा और वहा से चल पड़ा। घर पहुंचकर उमन जब अपनी मा को मरत्तर साहब की मत्यु की खबर भुनाई तो उसे मालूम हुआ कि उसने अवाजी उही जनाजे के साथ गए है। अब घर में केवल दो व्यक्ति थे। मा और बड़ी बहन । मा रसाईघर मे बैठी सब्जी पका रही थी और बड़ी बहन क्लसूम पाम ही एक बागडी लिए दरवारी की सरगम याद कर रही थी। गली के ट्रसर तडके चूपि गवनमण्ट स्कूल में पढ़त्त थे, उनपर इस्लामिया स्कत दे सकना साहट की मत्यु का कुछ असर नहीं हुआ था, इसलिए मसऊद न स्वयं को बिलकुल बेकार महसूम दिया। स्कूल का कोई शाम भी नहीं था । छठी क्लास में जो कुछ पढाया जाता था, उसको यह भर म अब्बाजी से पढ़ चुका था । खेलन के लिए भी उसके पास कोई चीज नही थी। एक मला कुचला त अलमारी मे पड़ा था लेकिन उसमे समऊद को कोई दिलचस्पी न थी। लूडो और इसी तरह के प्रय सेन जो उसकी बड़ी बहन अपनी सहेलियो के साथ प्रतिदिन खेलती थी, उसकी समझ म बाहर थे। समझ से बाहर यो थे कि मसॐ ने कभी उनको सम- झने की कोशिश ही नहीं की थी। स्वाभाविक हप से उसे ऐसे खेला से काइलगाव था। यस्ता अपने स्थान पर रखने और कोट उतारने के बाद वह रमाई- घर में अपनी मा के पास वठ गया और दरवारी की मरगम सुनता रहा, जिसम कई बार सा-नगम प्राता था। उसकी मा पालन काट रही थी। पाल काटन के बाद उसन हर-हरे पत्ता का गोला-पीना ढेर उठावर हण्डिया में डाल दिया । थोडी देर के बाद जब पालर को पाच ली तो उसमे से सफेद मफेद धुप्रा उडन लगा। घुमा/71
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