रही थी। लेकिन उसमें हिना के इत्र की तब खुशबू धुली हुई थी। रणधीर के हाथ बहुत देर तक उन गोरी चिट्टी लडकी के फच्चे दूध की तरह सफेद वक्षस्थल पर हवा के झाको की तरह फिरते रहे थे। उमकी उगनिया न उस गोरे-गार बदाम कई चिनगारिया दोडती हुई भी अनुभव की थी। उस कोमल बदन में कई जगहो पर सिमटी हुई कप- बपाहटा का भी उस पता चला था । जब उसने अपना मीना उसके वक्ष- स्थल के साथ मिलाया at रणवीर के शरीर के प्रयेर रोए ने उस लडकी पे बदन के छिडे हुए तारा की भी आवाज सुनी थी लेकिन वह आवाज पहा थी? वह पुकार जो उसन घाटन लरकी के शरीर की बू में सूची थी वह पुकार जो दूध के प्यासे बच्चो के गेने मे कही अधिक मादक होती है । वह पुधार जो स्वप्न वृत्त मे निकलकर निश्शब्द हो गई थी। रणधीर खिड़की के बाहर देख रहा था। उसके बिलकुल पास ही पीपल के नहाए हुए पत्ते झूम रहे थे। वह उनकी मस्ती भरी कपकपाटो वे उस पार कही बहुत दूर दखन की कोशिश कर रहा था, जहा मटमल बादला में विचित्र प्रकार की राशनी धुती हुई दिखाई देती थी, ठीक वैमी ही जैसी उस पाटन लडकी के सीन मे उसे नजर आई थी। ऐसी गाली जो भेद की बात की तरह मौन कि तु प्रत्यक्ष थी। रणधीर के पहलू म एक गोरी चिटटी लड़की जिसका शरीर दूध और घी म गुध माटे की तरह मुलायम था, लेटी थी, उमदे नीद से मदमात बदन से हिना के इत्र की खुशबू पा रही थी जो अब थको थकी- सो मालूम हाती थी । रणधीर को यह दम ताडती और उमाद को सीमा तक पहुची हुई खुगर बहुत बुरी मालम हुई । उसम कुछ खटास थी- एष अजीव किस्म की सदास, जसी अपवन का इकारो में होती है-- उदास--ग..an) रणधीर न अपने पहलू म सेटी हुई लडकी की ओर देखा । जिस तरह पटे हुए दूध के रग पानी म सफेद मुर्दा पुटकिया सैरन गतो है उसी प्रकार उस लड़की के दूधियाले शरीर पर परामों और पत्र तर रहे थे और वह हिना के इत्र की ऊटपटाग सुगबू वास्तव में रणधीर के दिन दिमाग म वह वू वमी हुई थी, जो उस पाटन लडकी 161
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