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शाम को जप खुदावश प्रापा तो सुलताना ने उनसे पूछा, 'तुम आज मारा दिन विघर गाया रहे?' खुदावर यवान म चूर पर हो रहा था। कहने लगा, 'पुगन किले ये पास से पा रहा हूँ। वहा एक बुजुग चुछ दिना से ठहरे हुए हैं। रोज उहीने पास से पा रहा ह, ताकि हमार दिन फिर जाए ।' कुछ होन तुमम बहा" 'नहीं, अभी वह मेहरवान नहीं हुए, पर सुलताना, मैं जो उनकी सिदमत कर रहा हूँ, वह वेकार नही जाएगी, अल्लाह की मेहरबानी स जल्द ही वारे यारे हो जाएगे।' सुलताना के दिमाग म मुहरम मनान वा ख्याल समाया हुआ था। सुदावस्था से रोनी प्रावाज मे वोली 'सारा-सारा दिन बाहर गायब रहत हो, मैं यहा पिजर म कैद रहती हू, कही प्रा-जा नही माती। मुहरम सिर पर प्रा गया है, कुछ तुमने उसकी फिफ भी की कि मुझे काल कपडे चाहिए। घर में फूटी बोडी तक नहीं । कगनिया थी सो एक एक पर निक गइ । भव तुम ही बतातो क्या होगा ? यो फीरो के पीछे क्य तक मारे मारे फिरते रहोगे । मुझे तो ऐसा दिखाई देता है कि यहा दिल्ली में खुदा ने भी हमसे मुह मोड लिया है। मेरी सुनो तो अपना काम शुरू कर दो। कुछ तो सहारा हो ही जाएगा।' खुदावरूश दरी पर लेट गया और पहले लगा पर यह काम शुरू करने के लिए भी नो थोडे बहुत परा चाहिए, सुदा के लिए अब ऐमी दुख भरी बातें न करो, मुझस अव बर्दाश्त नहीं हो सकती। मैंन सचमुच अवाना छोड़ने में सरून गलती थी, पर जो परता है अल्लाह ही करता है और हमारी भलाई के लिए ही करता है। च्या मालूम कुछ देर और दुम भोगने के बाद हम ' ____ मुलनाना ने बात काटने हुए पहा, 'तुम सुदा के लिए कुछ करो। चोरी बरी, डाका डाली पर मुझे एव सलवार का पडा जरूर ला दो। मेरे पास सफेद वोम्वी की कमीज पडी है, मैं उसे रगवा लूगी। सफेद नंतून पाएक नया दुपट्टा भी मेरे पास मौजूद है. वही जो तुमन मुमें पाली सलवार 155