7 सडर की ओर देखा तो वही नादमी एक बैलगाडी वे पाम खडा नजर आया जिसन थोडी दर पहले ललचाई हुई नजरो से सुलताना वी पोर देखा था । सुलताना ने हाथ से उस इशारा किया। उस आदमी ने इधर उधर देसकर एक हलके से इशारे से पूछा-विधर मे पाऊ ? सुलताना ने सीढिया का रास्ता बता दिया । वह आदमी कुछ दर तो वही खडा रहा और फिर वडी फुरती से ऊपर चना पाया। सुनताना न उस दरी पर बिठाया । जब वह बैठ गया तो बात चलान के लिए सुलताना न पछा 'आप ऊपर पाते हुए डर क्या रहे थे ? वह पादमी मुस्कराया, 'तुर मालूम हुआ भला इसम उरन की क्या बात है? 'यह मैंने इसलिए पूछा क्योकि आप देर तक वही खडे रहे थे। यह सुनकर वह फिर मुस्कराया और बोला, 'तुम्हे गलतफहमी हुई है । मैं तुम्हारे ऊपर वाले पनट की तरफ देख रहा था जहा कोई औरत सडी एप मद को ठेगा दिसा रही थी । यह देखकर मुझे बडा मजा आया। फिर बालकनी में हरा वल्ब जला तो मैं कुछ दर के लिए स्व गया। हरी रोशनी मुझे पसद है । प्राखा को बहुत अच्छी लगती है ।" यह कहकर उसने सुलताना के कमर म इधर-उधर देखना शुरू कर दिया । फिर एका एक उठ खडा हुमा। सुनताना न पूछा आप जा रहे हैं ?' उस आदमी ने उत्तर दिया, 'नही, मैं तुम्हारे इस मकान को देखना चाहता हूँ । चलो मुझे सारे कमरे दिखायो।' सुलताना ने उस तीनो मरे एक एक करके दिखा दिए। उस प्रामी ने बिलकुल खामोगी से उन कमरो का मुनायना किया । जब वे दोनो फिर उसी कमर म मा गए जहा पहले वठे थे तो उस आदमी न रहा मरा नाम शकर है। सुलताना ने पहली बार गौर से शवर की ओर दया । वह साधा- रण शान सूरत का आदमी था, लेकिन उसकी पाखें असाधारण रूप स स्वच्छ और निमल थी और कभी कभी उनम एक विचित्र प्रकार की 52 / टावा टवसिंह
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