कोई औरत नहीं' ईशारमिह न बडे दुख के साथ 'हा' में अपना मिर हिनाया । कुलवत कौर बिलकुल दीवानी हो गई । लपककर फोन म से परसान उठाई। म्यान को देने के छिवे की तरह उतारकर एव भार फेस और ईशरसिंह पर वार कर दिया। दूपर ही क्षण लह का फव्वारा छूट पड़ा। कुलवत कौर को इससे भी तसल्ली न हुई तो उसा जगली मिल्लियो की तरह ईशरसिंह के बाल नोचन गुरू कर दिए । साथ ही माथ वह अपनी मनात सौत को मोटी- माटी गालिया देती रही । ईशरसिंह ने थोड़ी देर के बाद क्षीण स्वर में प्राथना की, 'जाने दे कुलवत, अब जाने दे।' अावाज पीडा से परिपूण थी। कुलवत कौर पीचे हट गई। लहू ईशरसिंह के गले से उड-उडकर उमको मूछो पर गिर रहा था। उमने अपन कापते हुए हाठ खोले और बुलवत कौर की पार ध यवाद और उलाहने को मिली-जुली नजरा मे देखत हुए चोना, 'मेरी जान, तुमने बहुत जल्दी की, लेकिन जो हुमा, ठीक ही हुआ।' कुलवत कौर की या फिर भड़की, 'मगर वह कौन है तुम्हारी मा" लहू ईयरसिंह पी जवान तक पहुच गया। जव उमन उसका स्वाद चखा तो उसके बदन में झुग्झरी-सी दौट गई। 'और मैं मैं भैनी-या छ प्रादमिया को कत्ल कर चुका हू इसी करपान म कुलवत कौर के दिमाग में केवल दूसरी औरत थी, मैं पूछनी हूँ, कौन है वह हरामजादो' ईशरसिंह को पाखें घुधना रही थी। एक हल्की-सी चमक उनम पैदा हुई और उसने कुलवत कोर मे कहा, 'गाली न दे उस भडवी को।' कुवत चित्लाई 'मैं पूछती हू, वह है कौन' ईशरमिह के गले म प्रावाज रुघ गई, 'बताता हू, कहकर उसने अपनी गदन पर हाथ फेरा और उसपर अपना जिदा लह देखकर मुस्कराया, 'इसान माया भी अजीब चीज है।' कुनवन कार उसवे उत्तर की प्रतीक्षा मे थी, 'ईशरसिंह, तू मतलब . ठण्डा गोरत / 41
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