उबलन लगो , लेकिन यह सब करने पर भी ईशरसिंह अपने आपमे गर्मी पंदा न कर सका । जितन गुर और जितन दाव उसे याद थे सबके सब उसने पिट जान वाले पहलवान की तरह माजमा डाले पर कोई भी वार गर न हुआ । कुलवत कौर जिसके बदन के सारे तार तनकर पाप ही आप बज रहे थे - आवश्यक छेड ग्राड स तग पाकर बोली , ईशरसिंह, कापी फेट चुका , अब पत्ता फें ।
यह सुनते ही ईशरसिंह के हाथ मे जैम ताश की सारी गडडी नीचे फिमल गई । हाफता हुआ वह कुलवत कौर के पहल में लट गया और उसके माथे पर ठण्डे पसीने के लप होन लगे । ___ कुलवत कौर न उस गमाने की बहुत कोशिश की लेकिन असफल रही । अब तक मव कुछ मुह से कहे विना होता रहा था , लेकिन जब कुलवत कौर वे तन हुए अगो को घोर निराशा हुई तो वह झल्लार पलग स उतर गई । सामने खूटी पर चादर पडी थी , उस उतारकर उसने जल्दी जल्दी अपने शरीर के गिद लपेटा और नथुने फुलाकर बिफरे हुए स्वर मे वोली, ईगरसिंह वह कौन हरामजादी है, जिसके पास तू इतने दिन रहकर आया है, जिसने तुझे निचोड डाला है ?"
ईशरसिंह उमी तरह पलग पर लेटा हाफता रहा । उसने कोर उत्तर नहीं दिया । ___ वुलवत कौर कोववश उवलने लगी, मैं पूछती हू, कौन है वह चुडल , कौन है वह लिफ्ती , कौन है वह चोर पत्ता ?
ईगरसिंह ने निढाल स्वर मे उत्तर दिया कोई भी नही बुलवत , कोई भी नहीं ।
कुलवत कौर ने अपने भरे हुए कूल्हा पर हाथ रखकर बडी दढता से कहा , ईशरमिहा आज सच झूठ जानकर रहूगी - खाप्रो वाह गुरजा की कसम - क्या इसकी तह मे कोई औरत नहीं ?
ईशर्रासह न कुछ कहना चाहा, लेकिन कुलवत कौर ने उसवे बलिन से पहले एक बार फिर कडे स्वर मे कहा कसम खान से पहले सोच ले कि मैं भी सरदार निहालसिंह की बेटी हू बोटी बोटी नोच डालूगी अगर तूने झूट बोला - ले अब खा वाह गुरुजी की क्सम क्या इसकी तह म
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