?" बुवात कौर चिल्लाई, 'ईशरसिहा', फिर तुरत ही स्वर को भीचत हुए पलग पर से उठकर उसकी और बढते हुए बोली, 'कहा गायब रह तुम इतने दिन?' धारसिंह न अपने सूखे होठो पर जवान फेरी, 'मुझे मालूम नहीं। कुलवत कौर भिना गई 'यह कोई मा-या जवाब है।" ईगरमिह न करपान एक बार फेंक दी और पलग पर लेट गया। ऐमा मालूम होना था कि वह कई दिना का बीमार है । कुलवत कौर ने पलग की ओर दखा जो अब ईशारसिंह म लबालब भरा हुअा था, उसके मन मे महानुभूति पदा हो गई, उमके माथे पर हाथ रखकर उसने बडे प्यार में पूछा, जानी, क्या हुअा है तुम्ह ईशरसिंह छन की ओर देख रहा था । उस नजरें हटाकर कुलवत कौर के चिरपरिचित चेहर की ओर देखा, 'बुलवत', वह बस इतना ही कह पाया। अावाज मे पीडा थी। कुलवत कौर सारी की सारी सिमटकर अपने ऊपर वे होठ मे आ गई । 'हा जानो' कार वह उसे हल्के हल्के दाता से पाटन लगी। ईशरसिंह ने पगडी उतार दो । फिर बुलवत कौर की ओर सहारा लेने वाली नजरा स देखा । उमके गोश्त-भरे कूल्हे पर जोर से घप्पा मारा और सिर को झटका देकर अपने प्रापस कहा, 'यह कुडी-या दिमाग ही सराव है। झटका देने से उसके केश खुल गए । कुलवत कौर उगलियो मे उनम कधी करने लगी । ऐमा वरते हुए उसने बड़े प्यार से पूछा, 'ईशरसिंहा, यहा रहे तुम इतने दिन?' 'चुरे की मा के पर,' ईशरसिंह ने कुलयत कौर को घूरकर देखा और फिर एकाएक उम उभरे हुए सीने पो मनने लगा, 'कमम वाह गुरु की बडी जानदार पोरत हो।' कुनवत कौर ने एक प्रदा के साथ ईशरसिंह के हाथ भटक दिए और पूछा, 'तुम्हें मेरी कसम है, बतामो, पहा रहे शहर गए थे। ठण्डा गोरत / 37
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