पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/३३

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कब और कहा बिछुडी थी। इसी सोच-विचार म उसका दिमाग बार बार सकीना की मा की लाश पर जम जाता, जिसकी सारी अतडिया बाहर निक्ली हुई थी और फिर इसवे आगे वह कुछ न सोच पाता। सकीना की मा मर चुकी थी। उसने मिराजुद्दीन की प्राखो के सामने दम तोडा था, लेक्नि सकीना कहा थी, जिसके बारे मे मकीना की मा ने मरते समय कहा था, 'मुझे छोडो और सकीना को लेकर जल्दी से यहा से भाग जामो।' सकीना उसके साथ ही थी। दोनो नगे पाव भाग रहे थे। फिर सकीना का दुपटटा गिर पडा था और उसे उठान के लिए सिराजुद्दान ने रुकना चाहा था इसपर सकीना ने चिल्लाकर कहा था, 'अब्बाजी, छोडिए 'लेकिन उसने दुपटटा उठा लिया था, और यह साचते माचत उसने अपने कोट की उभरी हुई जेब की तरफ देखा और उसमे हाथ डालकर कपडा निकाला—सकीना का वही दुपटटा था, लेक्नि सकीना कहा थी? सिराजुद्दीन ने अपने थके हुए दिमाग पर बहुत जोर दिया लेकिन वह किमी भी नतीजे पर न पहुन सका। क्या वह मकीना को अपने साथ स्टेशन तक ले पाया था ? क्या वह उसके साथ ही गाडी में मवार थी? रास्ते में जब गाडी रोकी गई थी और बलवाई भीतर घुस आए थे तो क्या वह बेहोश हो गया था, जो वह सकीना को उठा ले गए मिराजुद्दीन के दिमाग में सवाल ही सवाल थे जवाव कोई नही था। उस हमदर्दी की जरूरत थी लेकिन चारो ओर जितने भी इमान फ्ले हुए थे उन सबको हमदर्दी की जरूरत थी। सिराजुद्दीन ने रोना चाहा मगर आखो ने उसकी सहायता नही को-आसू न जाने कहा गायव हो गए ? थे। छ दिन के वाद होशो हवास कुछ ठिकाने आए तो सिराजुद्दीन उन लोगो स मिला जा उसकी सहायता करने को तैयार थ । पाठ नौजवान थे जिनके पाम लारी थी बद थी । सिराजुद्दीन न उहे लाख लाख दुआए दी और सकीना का हुनिया बताया गोरा रग है और बहुत ही खूब सूरत है मुझपर नही अपनी मा पर थी उम्र यही सत्रह वरम के 32/टोबा टेवसिंह