खुशिया सुशिया सोच रहा था। बनवारी मे काले तम्या वाला पान लेकर वह उसकी दुकान के साय उस पत्थर व चवूनरे पर बैठा था जो दिन के वक्त टायरा और मारा के मुरललिप पुर्जा मे भरा हाता है । रात को साढे आठ बजे के करीव माटर के पुर्जे और टायर बेचने वाला की यह दुकान व द हो जाती है और यह चतरा खुशिया के लिए खाली हो जाता है। वह काले तम्बाकू वाला पान धीर वीर चवा रहा था और सोच रहा था। पान की गाढी तम्बाकू मिली पीक उमके दाता की रीखा से नि नकर उसके मुह मे धर उधर फिसल रही थी और उसे एमा लगता था कि उसके खयाल, दातो नने पिमकर, उनकी पीक मे घुल रह हैं। शायद यही वजह है कि वह उस फेंकना नही चाहता था। दुनिया पान की पीक मुह म गुनगुना रहा था और उस घटना के वार म सोच रहा था, जो उनके साथ अभी प्रभा पटी थी, यानी प्राध घण्टे पहले। वह उस चबूतर पर रोज की तरह वैठन से पहले सेतवाडी की पाचवी गली मे गया था। मगलौर म जो नई छोरी काना पाई थी, उसी गला र नुक्कड पर रहती थी। खुशिया से विमीन कहा था कि वह अपना मकान बदल रही है इसीलिए वह इसी बात का पता लगान के लिए यहा गया था। वाताकीपोली का दरवाजा उसने सटग्बटाया। अदर से भावान पाई, कौन है?' इसपर पुगिया न कहा मैं, मुग्गिया।' पागज दूमरे कमर स प्राई थी। थोडी दर के बाद दरवाजा खुला। युनिया अदर दावित हुा । जब काता न दरवाजा अदर में बद किया 22
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