'दादा' दिखाई न देता। उसने बहुत सोचा। उसकी जमानत थाने म ही हो गई थी, अब उसे कचहरी म पश होना था। मजिस्ट्रेट से वह बहुत घवगता था। ईरानी के होटल मे जब मेरी उसकी मुलाकात हुई तो मैंन महसूस किया कि वह बहुत परेशान है। उसे अपनी मूछो की वडी चिता थी, वह सोचता था कि यदि मूछो के माथ वह कचहरी में पेश हुआ तो बहुत सम्भव है, उसको सजा हो जाए। आप समझते हैं कि यह कहानी है, लेकिन यह वास्तविक्ता है कि वह बहुत परेशान था। उसके समस्त शिष्य हैरान थे-इसलिए कि वह कभी हैरान परेशान नहीं हुआ था। उसे अपनी मूछो की चिता थी क्यो कि उसके कुछ अभि न मित्रो ने उसस कहा था-'ममद भाई । कचहरी में जाना है तो टन मूछा के साथ कभी न जाना-मजिस्ट्रेट तुमको अदर कर देगा।' और वह सोचता था हर समय सोचता था कि उसकी मूछा ने उस आदमी को कल क्यिा है या उसन-लेकिन वह किसी परिणाम पर नहीं पहुच पाता था। उसने अपना खजर, मालूम नहीं जो पहली बार लहू म डूबा था या इमस पहले कई वार डूब चुका था, अपने नेफ म निकाला और होटल के वाहर गली में फेंक दिया। मैंन पाश्चय से उसस पूछा मदद भाई । यह क्या ?' 'कुछ नहीं विम्टो भाई-बहुत घोटाला हो गया है-चहरी मे जाना है--यार दोस्त कहत हैं कि तुम्हारी मूछे देखकर वह जरूर तुमको सजा देगा-अब बोलो क्या करू?' मैं क्या बोल सकता था? मैंने उसकी मडा की ओर देखा जो सचमुच भयानक थी। मैंने उससे केवल इतना कहा, 'मदद भाई वात तो ठीक है -~-तुम्हारी मछे मजिस्ट्रेट के फैमले पर जरूर असर डालेंगी-सच पूछो तो जो कुछ होगा, तुम्हारे खिलाफ नही, तुम्हारी मूछो के खिलाफ होगा। मदद भाई न अपनी चहेती मूछा पर बडे प्यार 'तो मैं मुडवा दू से उगली फेरी। ?' ममद भाई / 221
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