और बनोट की क्ला में निपुण–में जब अरब गली मे माया तो अवमर होटली मे उसका नाम सुनने में पाया लेकिन बहुत दिनो तर उससे मुला कात न हो सकी। मैं सुबह-सवेरे अपनी सोनी से निकल जाता था और बहुत रात गए लौटता था लेकिन ममद भाई से मिलने की वही उत्सुकता थी, क्योगि उमरे सम्बध म अरव गली में बहुत सी कहानिया प्रचलित थी-कि बीस पच्चीस प्रादमी यदि लाठियो स लैस होकर उसपर टूट पड़ें, तो भी वे उसका वाल तर वाफा नहीं कर सकत । एक मिनट में प्रदर प्रदर वह उन सबको चित कर देता है और यह कि उम जमा छुरीमार सार वम्बई में नहीं मिल सक्ता । या छुरी मारता है कि जिसके लगती है उसे पता भी नहीं चलता-सौ क्दम तक बिना कुछ अनुभव पिए चलता रहता है और प्रत मे एक्दम ढेर हो जाता है। लोग रहते हैं कि यह उसके हाथ की सफाई है। उसके हाय को यह सफाई देखने की मुझे उत्सुस्ता नहीं थी लेक्नि यो उमवे बारे म मय वातें मुन-मुनकर मेरे मन म यह इच्छा अवश्य उत्पान हो चुकी थी कि मैं उसे दयू । उमस वान न करू लक्नि निकट से देख लू कि कमा है-इस पूरे इलाके पर उमका व्यक्तित्व छाया हमा था । वह बहुत बडा दादा अर्थात बदमाश था लेकिन इसके बावजूद लोग कहते थे कि उसन क्सिीकी बहू बेटी की पोर कभी प्राख उठाकर नहीं देखा । 'लगोट का बहुत पक्या है'-'गरीवा के दुख दद का साझी- दार है ।' वेवल अरव गली ही नहीं, पास पास जितनी गलिया थी उनमें जितनी दीन, दरिद्र स्त्रिया थी, सब ममद भाई को जानती थी क्योकि वह प्राय उनकी आर्थिक सहायता करता रहता था। लेकिन वह स्वय भी उनके पास नही जाता था, अपो पिसी कम प्रायु के शिष्य को भेज देता था और उनका कुशल पूछ लेता था । मुझे मालूम नहीं कि उसको प्राय के क्या साधन थे, अच्छा खाता था, च्छा पहाता था। उसके पास एक छोटा-सा तागा था जिसमे बडा स्वस्थ टटू जुता होता था । वह स्वय ही उसे चलाना था। साथ दो तीन शिष्य होत थे। भिंडी वाजार मा एक चक्कर लगाकर या क्सिी दरगाह में ममद भाई | 209
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