ममद भाई पारस रोड से आप उस पार भीतर गली मे चले जाइए जो सफेद गली क्लाती ह तो उमके अन्तिम सिरे पर आपको कुछ होटल मिलेंगे । यो तो बम्बई म कदम कदम पर होटल और रेस्टोरा होते हैं लेकिन ये रेस्टोरा इसलिए बहुत दिलचस्प और अनूठे है क्योकि ये उस इलाके में हैं जहा भात भात की वेश्याए बसती हैं। एक युग बीत चुका है। बस, आप यही समझिए कि वीस वप के लग- भग जब इन रेस्टोरामो म मैं चाय पीया करता था और खाना खाया करता था । सफेद गली से आगे निकलकर 'प्ले हाउस पाता है। उधर दिन भर शोर शराबा रहता है । सिनमा के शो दिन-भर चलते रहते थे। चम्पिया होती थी। सिनमा घर शायद चार थे। उनके बाहर बडे विचित्र ढग में सिनेमा वे कमचारी घटिया बजा बजार लोगो को निमन्त्रण देते थे-'प्रानो, प्रायो,-दो आन मे-फस्ट क्लास खेल दो पान म।' कभी-कभी य घटिया बजाने वाले जबदस्ती लोगो को भीतर ढवेल दते थे-बाहर कुसियो पर चम्पी कराने वाले वैठे होते थे जिनकी खोपडियो की मरम्मत बडे वज्ञानिक ढग से की जाती थी। मालिश अच्छी चीज है लेकिन मेरी समझ में नहीं आता कि वम्बई के रहन वाले इसपर इतने मोहित क्यो है। दिन को और रात को हर समय उहे तेल मालिश की पावश्यक्ता अनुभव होती है। आप यदि चाह तो रात के तीन बजे बड़ी मामानी से तेल मालिशिमा' बुलवा सकते हैं । या भी सारी रात, चाहे आप बम्बई के विमी कोन मे हा, आप अवश्य ही यह आवाज सुनते रहेंगे-पी -पी-पी।' यह पी' चम्पी का सक्षिप्त रूप है। पारम रोड या तो एक सडक का नाम है लेकिन वास्तव में यह उस नारे का नाम है जहा वश्याए रहनी हैं । यह बहुत वडा इल इसम कई गलिया हैं, जिनके विभिन नाम है। लकिन सुविधास्वरूप 207
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