हसती-हसती बेंत की कुर्सी पर बैठ गई। उसके खाज मारे कुत्ते ने भूक भक- कर माधो को कमरे से बाहर निकाल दिया। उस सीढिया उतार जब कुत्ता अपनी रुण्डमुण्ड दुम हिलाता सुग धी के पास आया और उसके कदमा के पाम वैठकर कान फडफडान लगा तो सुगधी चौकी । उसने अपन पारो ओर एक भयानक सनाटा देखा-ऐसा स नाटा, जो उसन पल कभी न देखा था। उसे ऐसा लगा कि हर चीज खाली है जसे मुसाफिरा स लदी हुई रेलगाडी सव स्टशना पर मुसाफिर उतारकर अब तोह के शेड म विलकुल अकेली खडी है। यह खालीपन, जो अचानक सुगधी के अन्दर पैदा हो गया था, उस बहुत तकलीफ द रहा था । उसन काफी देर तक उस गूय को भरन का प्रयास किया लेकिन व्यथ । वह एक ही समय में अनगिनत विचार अपने दिमाग म ठूसती थी, पर एक्दम छलनी का सा हिसाब था। इधर दिमाग को भरती थी, उधर वह खाली हो जाता था। बडी देर तक वह बेंत की कुर्सी पर बैठी रही। सोच विचार के बाद जब उसको अपना मन बहलान का कोई तरीका न सूझा तो उसने अपने खाज मार कुत्ते को गोद म उठाया और सागवान के चौडे पलग पर उस बगल म लिटाकर सो गई। 206/ टोबाटव सिंह
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