घर की तरफ चलन लगी तो विचारा का बोभ न होन के कारण उसके क्दम कई बार लडखडाए । अपन मकान के पास पहुची तो एक टोस के साथ फिर सारी घटना उसके मन में उठी और दद की तरह उसके रोए-रोप पर छा गई । कदम फिर वोमिल हो गए और वह इस बात को शिद्दत के साथ महसूस करने लगी कि घर स बुलाकर, वाहर बाजार मे मुह पर रोशनी का चाटा मार- कर, एक आदमी ने अभी-अभी उसकी हतर की है। यह खयाल आया तो उमन अपनी पसलियो पर किसीके सल अगूठे महसूस किए, जैस कोई उसे भेड वकरी की तरह दवा दवाकर देख रहा हो कि गोश्त भी है या वाल ही है । 'उस सेठ न, परमात्मा करे 'सुगधी ने चाहा कि उसे शाप दे, पर सोचा, शाप दने स क्या वनगा। मजा तो तब था कि वह सामने होता और वह उस वजूद के हर जर पर अपनी धिक्कारें लिख देती उसके मुह पर कुछ ऐसी बात कहती कि वह जिदगी भर वैचन रहता । कपडे फाडकर उसके सामन नगी हो जाती और बहती, 'यही लेने पाया था न तू ? ले, दाम दिए विना ले जा इमे पर जो कुछ मैं हू. जो कुछ मेरे अंदर छिपा है वह तू क्या तेरा बाप भी नहीं खरीद सक्ता बदला लेने के नये नये तरीके सुगधी के दिमाग मे आ रहे थे । अगर उस सेठ स एक वार,सिफ एक बार उसकी मुठभेड हो जाए तो वह यह करे- यू उमस बदला ले- नहीं, यू नहीं, यू-लेकिन जब सुग धी सोचती कि सठ से उसका दागगरा मिलना असम्भव है तो वह उसे एक छोटी सी गाली देने पर ही खुद को रानी कर लेती-बस, मिफ एक छोटी सी गाली, जा उसकी नाक पर चिपकू मक्खी की तरह बठ जाए और हमेशा वही जमी 2 इसी उधेडबुन मे वह दूसरी मजिल पर अपनी खोली के पास पहुच गई । चोली मे स चावी निकालकर ताला खोलन के लिए हाथ बढाया तो चाबी हवा ही मे घूमकर रह गई। कुण्डे मे ताला नहीं था। सुगधी ने किवाड अदर की ओर दवाए तो हत्की-सी चरचराहट पैदा हुई । अदर से किसीन कुण्डी खाली और दरवाजे न जम्भाई ली। सुगधी अदर 200/टोबा टेकर्मिह
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