हैं। वह जवान थी, उसके अग मुगन थे। वभी-अभी, नहाते समय पर उमकी निगाह अपनी गना पर पती या तो वह घुट उनकी गागाई और गदराहट को पसद किया करती थी । वह हममुप थी। इन पाच वरमा के दौरान शायद ही कोई आदमी उमम नाश होकर गया हो बडी मिलनमार थी, बडी महाय थी। पिछत्र दिनो, निममस म, जब वह गोत पीठा म रहा परती था एक नौजवान लल्का उम पास पाया था । सुबह उठकर, जब उसने कमर म जावर, बटी से अपना कोट उतारा तो वटुमा गायव पाया । सुगधी का नौकर यह बटुमा ले उ था । वेचारा बहुत परेशान हुग्रा । छुट्टिया वितात व लिए हैदराबाट स वम्बई आया था। अर उनके पास यापम जान के लिए भी विराया न था । सुगधी न तरस साकर उस उसके दस म्पये वापम द दिए थे। 'मुभम क्या बुराई है 'मुग धी 7 यह सवाल हर उस चीज से क्यिा, जो उसकी पासा के मामन थी । गैस के अध लम्प लोह के खम्भे, पुट पाथ वे चौकोर पत्थर और सडर की उखडी हुई वजरी इन सब चीजा की तरफ उसन बारी-बारी म दवा, फिर ग्रानाश की ओर निगाह उठाइ, जो उसके ऊपर झुका हुअा था, पर सुग धी को कोई जवाब न मिला। जवाय उसके अंदर मौजूद था। वह जानती थी कि वह बुरी नही, अच्छी है पर वह चाहती थी कि कोद उममा समथन करे कोई कोई उस वक्त कोई उसने कधो पर हाथ रखर सिफ इतना यह दे, मुग धी' कौत रहता है तू बुरी है ? जो तुझे बुरा कहे, यह अाप पुरा नहीं, यह करने की कोइ खाम जरूरत नहीं थी। किसीका इतना भर कह देना काफी था सुगधी, तू बहुत अच्छी है।' वह सोचन लगी कि वह क्यो चाहती है, कोई उसको तारीफ करे ? इससे पहले उमे इतनी गिदत्त से इस बात की जरत महसूस न हुई थी। प्राज क्या वह बेजान चीतो को भी एसी नजरो से देखती है, जम उनपर अपन अच्छे होने का एहमास तारी करना चाहती हो । उमरे जिस्म का जरा जरा क्या ‘मा बन रहा था। वह मा बनकर धरती की हर चीज को अपनी गोद म लेने के लिए क्या तैयार हो रही थी। उसका जी क्या चाहता था कि वह सामन वाले गम के खम्भे के माय चिमट जाए और 198/ टोबा टेवमिह
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