रोने का खयाल सुगधी को सिफ इसीलिए पाया कि उसकी शाखा में गुस्स और वैवमी को शिद्दत के कारण तीन चार बडे बड आसू बन रह थे। एकाएक सुग धी ने अपनी प्रासा से सवाल किया, तुम रोती क्यो हो? तुम्हें क्या हुअा है कि टपकने लगो हो।' आखा स किया गया सवाल कुछ क्षणो तक उन प्रासुप्रो मे तैरता रहा, जो अब पलका पर काप रह थ । सुगधी उन पासुनो म देर तक उस शूय को घूरती रही, जिधर सेठ की माटर गई थी। फर फड फड यह नावाज पहा से पाई ? सुगधी ने चौक्कर इधर उधर देखा, लेकिन क्सिीको न पाया अरे । यह तो उसका दिल पडफडाया था-वह समझी थी, मोटर का इजन बोला है। उसका दिल यह क्या हो गया था उसके दिल को आज ही यह रोग लग गया था उसे अच्छा भला चलता चलता, एक जगह रुककर धड धड क्या करता था विलकुल उस घिसे हुए रिकाड की तरह, जो सुइ के नीचे एक जगह पाकर रुक जाता था और 'रात क्टी गिन गिन तारे कहता रहता 'तारे- तारे की रट लगा देता था। प्रासमान तारो से अटा हुआ था । सुग धी ने उनकी ओर देखा और कहा, 'क्तिने सुदर है वह चाहती थी कि अपना ध्यान किसी और तरफ पलट दे, पर जव उमने 'सुदर' कहा तो झट से यह खयाल उसके दिमाग मे कूदा, 'ये तारे सु दर हैं, पर तू क्तिनी भोण्डी है क्या भूल गई कि अभी अभी तेरी सूरत को फटकारा गया है ?' सुग धी कुस्प तो नहीं थी। यह खयाल आते ही वे सारी परछाइया एक एक करके उसकी पाखा के सामने आने लगी, जो इन पाच वरसा के दौरा| वह प्राइन म देख चुकी थी। इसमे कोई सदेह नही कि उसका रग म्प अब वह नहीं रहा था, जो आज से पाच साल पहले था, जबकि वह सारी चिन्तामा से मुक्त, अपने मा बाप के साथ रहा करती थी। लेकिन वह कुरूप तो नही हो गई थी। उसकी शक्ल सूरत उन ग्राम औरतो की सी थी, जिनकी ओर मद गुजरते गुजरत घूरकर देख लिया करत है । उसमे वे सारी खूविया मौजूद थी, जो सुगधी के खयाल म हर मद उस औरत मे जस्री समझता है, जिसके साथ उसे एक दो रातें बितानी होती हतक | 197
पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/२००
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।