घर की तरफ सुगधी के कदम उठे ही थे कि रक गए और वह ठहर कर सोचने तगी, रामलाल दलाल का खयाल है कि उस मरी शक्ल पस द नही आई-शक्ल का तो उमन जिन नही क्यिा । उसन ता यह कहा था ~सुग धी, पस द नहीं किया तुझे । उसे उस सिफ मेरी गग्ल ही पस द नही पाती। वह, जो अमावस को रात को प्राया था, क्तिनी बुरी सूरत थी उसकी । क्या मैंन नाक- F-भी नही चढाई थी? जब वह मेरे साथ सोने लगा था तो मुझे घिन नही आइ थी ? क्या मुझे उबकाइ आते ग्रात नहीं रुक गई थी? ठीक है पर सुगधी, तूने उसे दुत्कारा नहीं था, तूने उसे ठुकराया नही था, उस मोटर वाले सेठ ने तो तरे मुह पर थका इस 'ऊह या और मतलब ही क्या है? यही वि इस छछू दर के सिर मे चमेली का तल ऊह यह मुह और मसूर की दाल पर रामलाल, तू यह छिपरली वहा मे पकडकर ले पाया है इसी लौण्डिया की इतनी तारीफ कर रहा था तू दस रपय और यह औरत खच्चर क्या बुरी है सुगधी सोच रही थी और उसके पैर के अंगूठे स लेकर सिर की चोटी तक गम लहरें दौड़ रही थी। उसको कभी अपने पापपर गुस्मा प्राता था और कभी रामलाल दलाल पर, जिसन रात के दो बजे उमे बमाराम पिया । लकिन फौरन ही दोनो का वेवसूर पाकर वह सठ या खयाल करती थी। उस खयाल के प्रात ही उसकी आखें उसके बान उसको बाह उसकी दागें उसका सब कुछ मुडता था कि उस सठ यो को देख पाए उसके अदर यह इन्छा बडी गिद्द स पदा हो रही वि जो कुछ हो चुना है, एक बार फिर हो मिफ एक बार वह होत होले मोटर की तरफ बढे, मोटर के अदर स एक हाथ टाच निकाले और उसव हरे पर रोशनी फॅय ऊह' को प्रावाज पाए और सुगधी अधाधुध अपन दोना पजा से उमका मुह नोचना गुरु कर द । जगली बिल्ली की तरह मपटे और अपनी उगलिया य सार नासून जो उसने नय पान के मुताबिय बना रखे थे, उम मठ ५ गाला मगदाद वाना म पत्रडकर उम बाहर घमीट ल और घडाघड पीटना गुरु घरद, पोर जर या जाग जय था जाए तो रोना गुरु पर दे। 196/टोया टयमिह
पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/१९९
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।