हवा में लहरा रही थी। यह साडी और उसकी रेशमी सरसराहट सुग धी को कितनी बुरी मालूम हो रही थी। वह चाहती थी कि उस सादी के चिथडे उटा द, क्याकि माडी हवाम लहरा लहगार 'ऊ जह' कर रही थी। गाला पर उसो पाउडर लगाया था कि हाठा पर सुखी । जव उमे सयाल पाया कि यह सिंगार उसन अपन प्रापको पम द रान के लिए किया था तोशम के मारे उमे पसीना पा गया। मह शाम दगी दूर करन के लिए उसन क्या कुछ न मोबा, 'मैंन उम मुए को दिवान के लिए थोडे ही प्रपा प्रापको सजाया था। यह तो मेरी आदत है-~-मेरी क्या, सबकी यही पादत है पर पर यह रात के दो बजे और रामलाल दलाल और यह बाजार और वह मोटर और टाच की चमक।' यह सोचते ही रोशनी के घरे उमको नजर की हद तक फिजा म इधर उधर तैरन लग और मोटर के इजन की फडफडाहट उसे हवा वे हर भोरे मे मुनाई दने लगी। उसके माथे पर वार का लेप, गो सिंगार करते समय बिलकुल हलका हो गया था, पसीना पाने की वजह से उसके लोमर धाम दाखिल होन लगा और सुगधी को अपना माथा किसी और का माथा मालूम हुआ । जब हवा का एक भोका उसने पसीन स भीर माथे के पास से गुजरा तो उस ऐमा लगा कि ठण्डा-ठण्डा टीन का टुकडा काटकर उसके माथे के माथ चिपका दिया गया है। रि मदद वैम वा वसा मौजूद था पर विचाग की भीडभाड और उनके शोर ने उस दद को अपन नीचे दबा रखा था। सुगधी न कई बार उस दर्द को अपो खयात्रों के नीचे स निकालकर पर लाना चाहा, पर नाकाम रही। वह चाहती थी कि किमी न किसी तरह उसका अग अग दुवन लग । उ सिर म दद हो-एसा दद कि वह सिफ ६६ हो का सयाल कर, बाकी सब कुछ भूल जाए । यह मोचते सोचते उनके दिल मे कुछ हुमा--क्या यह दद था?- -पल भर के लिए उसका दिल सिडा और फिर फैल गया यह क्या था लागत है । यह तो वही अह' थी, जो उमरे दिल के प्रदर भी मिकुडती थी और कभी 7 फैलती थी। 1 10.
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