साथ गहरी हो गई, जसे किसीन नोकोले चाकू से शीशम की मारली लकडी म धार-मी डाल दी हो । उसका सारा चेहरा हम रहा था और अपन अदर उसने उस गोरे को सीने की प्राग म जलाकर राय पर डाला था। जय गोर ने, जो विजली के खम्भे की प्रोट महना वा म्प बचाकर सिगरेट सुलगा रहा था, मुडकर तागे के पायदान की तरफ पदम बढाया तो अचानव उस्ताद मगू की गोर उसकी निगाहें चार हुइ और एसा लगा वि एकसाथ प्रानन सामने की बटूका स गोलिया निकली और मापस मे टकराकर, प्राग का एक ग ना बनकर, ऊपर का उड गई। उस्ताद मगू जो अपने दायें हाथ स लगाम के वत सालकर तागे से नीचे उतरने वाला था, अपन सामन सडे गोरे को यू देख रहा था जैसे वह उसके वजूद के जर्रे जर को अपनी निगाहा से चवा रहा हो और गोरा कुछ इस तरह अपनी नीली पतलून पर स अनदेखी चीजें भाड रहा था जैस वह उस्ताद मगू के इस हमले से अपने वजूद के कुछ हिस्स बचा लेन की कोशिश कर रहा हो। गोरे ने सिंगरेद का धुग्रा निगलते हुए कहा, 'जाना मागटा या फिर गडवड़ करगा ?' 'वही है।' ये शब्द उस्ताद मगू के दिमाग म पदा हुए और उसकी बौडी छाती के अदर नाचने लगे । 'वही है उसन य गब्द अपने मुह के अदर दाहराय और साथ ही उसे पूरा यकीन हो गया कि गोरा, जो उसके सामन एडा था, वही है जिसमे पिछले वरम उसकी झडप हुई थी पार उस खामग्वाह के भगडे म जिमकी वजह गोरे के दिमाग मे चटी हुई शराब थी उम लाचार होकर बहुत-सी बातें सहनी पड़ी थी । उस्ताद मगू न गोर का दिमाग दुरुस्त पर दिया होता, बल्कि उसके पुर्जे उडा दिए होते, पर वह मिसी खास कारण स चुप हो गया था । उसको पता था, इस तरह के भगडों मे अदालत का नजला आम तौर पर कोचवाना पर ही गिरता है । उस्ताद मग ने पिछले बरस की लडाई और पहली अप्रैल के नय कान्न पर गौर करते हुए गोर स पूछा, 'कहा जान मागटा है ? उस्ताद मगू के लहजे मे चावुक जैसी तेजी थी। नया कानून / 19
पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/१८
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।