। कोट मे तो नौ बजे के बाद ही काम शुरू होता है । अव इससे पहले नया गानून क्या नजर पाएगा ?" जन उसमा तागा गवनमेण्ट पालेज ये दरवाजे ये परीय पहुंचा तो कालेज के घडियाल न वडे घमण्ड से नौ वनाए । जो विद्यार्थी वालेज ये बडे दरवाजे से बाहर निकल रहे थे, सुन-पोरा थ, पर उस्ताद मग को न जाने क्या उनके पपडे मले मल स नार पाए । गायद इसका कारण यह था कि उसकी निगाह माज पासो को चौंधिया देने वाले रिमी जलवे या इतजार कर रही थी ताग को दायें हाथ मोडार वह थोड़ी देर के बाद फिर अनारकली मे चला पाया । बाजार मी आधी दुकानें खुल चुकी थी और अब तोगा की आमद रफ्त भी बढ़ गई थी। हलवाई की दुकाना पर ग्राहका भी सूब भीड लगी थी। मनिहारी वाला की नुमायशी चीजें शीशे की अलमारिया मे से लोगो को अपनी ओर खीच रही थी पौर बिजली के तारा पर रई कबूतर आपस मे लड झगड रहे थे, पर उस्ताद मगू के लिए इन तमाम चीजा में कोई दिलचस्पी नही थी । वह नये कानून को देखना चाहता था, ठीक उसी तरह जिस तरह कि वह अपन घोडे को देख रहा था। जब उस्ताद भगू के घर वच्चा पदा होने वाला था तो उसने चार पाच महीने बडी बेचैनी मे गुजारे थे। उसको विश्वास था कि वच्चा किसी न किसी दिन जर पैदा होगा। पर वह इतजार की पडिया नहीं काट सकता था। वह चाहता था कि अपने बच्चे को सिफ एक नजर देख ले । इसके बाद वह पता होता रहे। चुनाचे इसी गर मगलूब इच्छा के तहत उसने कई बार अपनी बीमार वीवी के पट को दबा दबाकर और उसके ऊपर कान रख रखकर अपने वच्चे के बारे में कुछ जानना चाहा था। पर वह नाकाम रहा था। एक बार तो वह इतजार करते करत इतना तग पा गया था कि अपनी बीवी पर चरम भी पडा था 'तू हर वक्त मुर्दे की तरह पडी रहती है। उठ और जरा चल फिर, तरे अगो म थोड़ी सी ताक्त तो पाए। या तरता बन रहने से कुछ नहोगा। तू समझती है कि इस तरह लटे रोटे बच्चा जन देगी?' उस्ताद मगू तबियत स बहुत जल्दबाज था। वह हर चीज का 16/टोबा टेकसिंह
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