और वाहर ले गया और मेरी बीवी साचती ही रह गई । तागे म सवार होकर अव चडदे न युट सोचन के ढग म कहा, यह तो हो गया , अब क्या प्रोग्राम है फिर खिलखिलापर हसा, मम्मी ग्रट मम्मी
में उमस पूछन ही वाला था कि यह मम्मी रिस विडीमार की पोलाद है वि चडढ न बाता का ऐमा सिलमिला शुम पर दिया कि मरा प्रल बेमौत मर गया ।
तागा वापस उम डाक्वगलेनुमा कोठी पर पहुचा,जिसका नाम सईदा वाटेज था , लेकिन चड्ढा उभयो रजीदा काटेज कहा करता था क्योकि उसम रहन वाल सबके सब रजीदा रहते हैं । हालाकि यह गलत था , जमा नि मुझे बाद म मालूम हुआ ।
उस काटज में काफी आदमी रहते थे हालावि ऊपरी ढग स देखने मे यह जगह बिलकुल गरमाबाद मालूम होती थी । सबवे सब उसी फिल्म कम्पनी के नौकर थे, जो महीन की तनरवाह हर तीन महीन बाद दती थी और वह भी कई स्तिो म । एक एक परके जब वहा के निवासिया स मेरा परिचय हुमा तो पता चला कि सबके सब असिस्टण्ट डायरक्टर थे कोई चीफ असिस्टैण्ट डायरेक्टर, कोई उसका सहायक और कोई उस सहायर का सहायक । हर दूसरा किसी पहले या महाया था और अपनी निजी फिल्म कम्पनी की नीव डालने के लिए पैमा अट्ठा कर रहा था । अपने पहनाय और हाव -भाव से हर कोई होरो मालूम होता था । कण्ट्रोल का जमाना था , लेकिन किसीदे पाम राशन काड नहीं था । वे चीजें भी , जो थोडी मो तकलीफ के बाद मामानी से कम कीमत पर मिल सकती थी , ये लोग ब्लंक माट स सरोदते थे । पिक्चर जरूर देखते थे, रेम का जमाना होता तो रेस खेलते थे, नहीं तो सट्टा । जीतते कभी कभार ही थे , लेक्नि हारते हा रोज थे ।
सईदा काटेज की पावादी बहुत धनी थी । चूषि जगह कम थी , इम लिए मोटर गैरेज भी रहने के काम में लाया जाता था । उसमे एक फैमिलो रहती थी । गीरी नाम की एक स्त्री थी , जिसका पति शायद एकापता तोडने लिए असिस्टेण्ट डायरक्टर नहीं था । वह उसी फिल्म बम्पनी में नौकर था , लेकिन मोटर ड्राइवर था । मालूम नही वह क्व भाता था और
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