पीतल का काम था वह तो सोने की तरह दमकता था । इस लिहाज से भी नये कानून को चमक्ता दमक्ता होना जरूरी था ।
पहली अप्रैल तक उस्ताद मगू ने नये विधान के पक्ष और विपक्ष मे वहुत कुछ मुना । पर उसके बारे मे जो खाका वह अपने मन म बना चुका था , उस वह बदल न सका । वह समझता था कि पहली अप्रल का नये कानून के पाते ही सब मामला साफ हो जाएगा और उसका विश्वास था गि उस पाने पर जो चीजें नजर आएगी उनम उसकी आखो को जरूर ठण्डक पहुचेगी ।
प्रासिर माच के इक्तीस दिन सत्म हो गए और अप्रैल के शुरू होन मे रान के च द खामोश घण्ट वाकी रह गए । मौसम पाम दिनो की नि . स्वत ठण्डा था और हवा मे ताजगी थी ।
पहती अपल को सुबह सवेरे उस्ताद मगू उठा और अस्तवल मे जाकर उसन तागे मे घोडे को जोता और बाहर निकल गया । उसकी तबियत आज असाधारण रूप से प्रम न थी । वह अाज नये कानून को देखन वाला था ।
उसन सुबह के सद धुधलके मे कई तग और खुले बाजारो का चक्कर लगाया मगर उसे हर चीज पुरानी नजर आई । आसमान की तरह पुरानी उसको निगाह आज खास तौर पर नया रंग देखना चाहती थी , पर सिवाय उस क्लगी के , जो रग बिरगे परी से बनी थी और उसके धाडे के सिर पर जमी हुई थी , वाकी सब चीजें पुरानो नजर पाती थी । यह नयी क्लगी उसने नय कानून की खुशी म इक्तीस माच को चौधरी खुदावरश स साढे चौदह पाने म सरादी थी ।
घोडे की टापो की आवाज, काली सडक और उसके आसपास थाडा. थोडा फासला छोडकर लगाए हुए विजली के खम्भे , दुकानो के बोड , उस घोटे के गले म पडे हुए घुघरुपा को झनझनाहट , बाजार मे चलते फिरते आदमी - इनम स कौन सी चीज नयी थी ? जाहिर है कि कोई भी नही । लेकिन उस्ताद मगू निराश नही हुआ ।
अभी बहुत सवेरा है । दुकानें भी तो सबकी सब वद हैं । इस सयाल न उस तसवीन दी । इसके अलावा, वह यह भी सोचता था , हाई
नया कानून / 15