गई थी, जो उसे उनके माने को सवर दे दिया परती पी। उसपी बडी इच्छा थी कि वे लोग पाए, जा उसके प्रति प्रेम प्रदर्शित करते थे और उमदे लिए पन मिठाइया और कपडे लाते थे। वह अगर उनम पूछता कि टोवा टेकसिंह कहा तो है वे सचमुच बता देते वि पामि स्तान म है या हिंदुस्तान मे, क्यावि उमका सयाल था कि वे टोदा टक- सिंह में ही प्राते थे, जहा उसकी जमीनें है। पागनसाने में एक पागल ऐमा भी था, जाप्रपनेका खुदा कहता था। उसस एक दिन जब विशनसिंह ने पूछा वि टोवा टेवसिंह पारिस्तान मे है या हिदुस्तान मे, तो उसने अपनी पादत के मुताविष एव' कहरहा लगाया और कहा, 'वह न पाकिस्तान में है और न हिदुस्तान मे, इसलिए वि हमने अभी तक हुक्म ही नहीं दिया।' विशनसिंह ने उस खुदा से कई बार बडी मिनत-खुशामद से कहा कि वह हुक्म दे दे, ताकि झझट खत्म हो, मगर वह बहुत व्यस्त था, क्यो वि उस और भी बहुत-स हुक्म देने थे । एक दिन तग प्रापर वह उसपर बरस पडा, पापड दी गिडगिड दी, ऍक्स दी वेध्याना दी, मूग दी दाल प्राव वाह गुरुजी दा खालसा एण्ड वाह गुरूजी दो फ्तह-जो बोले सो निहाल सत सिरी प्रमाल । उसका शायद यह मतलव था कि तुम मुसलमाना के खुदा हा, सिसा के खुदा होत ता जस्र मेरी सुनते। अदला बदली से कुछ दिन पहले टाबा टेकमिह पाप मुसलमान, जो उसका दोस्त था, मुलाकात के लिए आया । पहले वह कभी नहीं पाया था । जव विशनसिंह न उस देखा तो एक तरफहट गया और वापस जा लगा, लेकिन सिपाहियो । उस रोया, 'तुमसे मिलने पाया है-तुम्हारा दोस्त फलदीन है। बिशनसिंह ने फजलदीन को एक नजर से देखा और कुछ बडबडाने लगा। फजलदीन ने आगे बढपर उसके कंधे पर हाथ रख दिया। मैं बहुत दिना से सोच रहा था कि तुमम मिलू लेकिन फुरसत ही न मिली तुम्हारे सब प्रादमी राजी-खुशी हि दुस्तान पहुच गए हैं । मुझसे जितनी मदद हो सकती थी की, लेकिन तुम्हारी चेटी रूपकौर टोबा टेवसिंह | 127
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