पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/११६

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जाए,जीनत और यामीन की दोस्ती और मजनून हो जाए तो नाहौर वापस चला जाए मगर ऐसा न हुा । नगीना होटल में एक प्रिस्चियन औरत न एक कमरा किराये पर लिया, उसकी जवान लडकी से यामीन की प्राय दर गई चुनाचे जीनत देचारी होटल में बैठी रही और यामीन उसकी माटर म मुबह शाम उम लड़यो को घुमाना रहना ! वायू गापीनाय का रमका पता चला तो या दुप हुआ उन मुझसे कहा 'मण्टा माहरा कम लोग है । भई, दिल उचाट हो गया है तो साफ कह दो। रिन जीनत भी अजीव है । अच्छी तरह मालूम है कि क्या हो रहा है, मगर मु? स दनना भी नहीं रहती-मिया, अगर तुम्ह उम पिस्टान छाररी म द लडाना है तो अपनी माटर पा चोवस्त परो, मेरी मोर क्या इम्तमानमरत हा मैं क्या करू मण्टो माहा बड़ी शरीफ पोर नेक औरत है। कुछ समझ म नहीं पाता । थोडी-सी चालार तो बनना चाहिए।' यासीन स मम्ब प समाप्त होने के वार जीत न कोई मदमा महमूम मिया। बहुत दिना राब काई और नई यात न हुई। एक दिन रैलीफोन किया नो मारम हुआ कि गोपीनाथ गुलाम प्रती और गफ्फार माई के साथ लाहोर चला गया है, रपय का वदावस्त बरन क्यानि पचास हजार खत्म हो चुके थे। जाते वचन यह जीनत स कह गया था कि उम नाहौर म ज्यादा दिन लगेंग, क्योकि उम कुछ मकान बेचने ? पड़ेंगे। मरदार को मारपिया वे टीका की जरूरत थी, मण्डो को पैसोनी। दोना न मिलकर कोशिश की। हर रोज दो-तीन प्रादमी पासमर ले आत । जीनत मे हा गया कि बाबू गोपीनाथ वापस नही पागा, इस- लिए उम अपनी फिक्र करनी चाहिए । मौ सवा सौ रुपये रोज के हो जात, जिनम से प्राधे जीनन वा मिलते, बाकी सैण्डो और सरदार दवा मैंने एक दिन जीनन म कहा, 'यह तुम क्या कर रही हो ?' उसने वडे अल्ह पन से कहा, 'मुझे कुछ नहीं मालूम भाईजान य लाग जो कुछ बापू गोपीनाथ | 117