कि वह वहा रहता है । एक दिन अचानक रडियो स्टेशन पर मुलाकात हो गई। सरत परगानी की हालत म था। जब मैंने उमस कहा कि तुम्ह जीनत बुलाती है तो उरान जवाब दिया- मुझे यह पंगाम और जरिय स भी मिल चुका है। अफसोस है अाजकल मुझ बिलकुल फुमत नहीं। जीनत बहुत अच्छी औरत है लकितअफ्मास है कि वह बह शरीप है। एसी औरता स जो बीविया जमी लगें मुभ काई दिलचस्पी नहा शफीक म जब निराशा हुई ता जीनत न सरकार के साथ फिर अपालो वदर जाना शुरू किया। पद्रह दिना म बडी मुश्किल स कई गैलन पट्रोल पूक्ने क बाट सरदार न दा ग्रामी फास उनस जीनत को चार सौ रुपय मिले । बाबू गोपीनाथ न समझा यि हालात अच्छे है क्याकि उनमें से एक न जा रेशमी कपडा वी मिल का मालिक था जीनत स वहा कि मैं तुमस गाली करुगा। एक महीना गुजर गया लकिन वह आदमी फिर जीनत के पाम न पाया। एक रोज मैं जाने क्सि काम से हानबी रोड पर जा रहा था कि मुझे फुटपाथ के पास जीनत की मोटर खडी नजर आई। पिछली सीट पर मुहम्मद यासीन बैठा था नगीना होटल का मालिक । मैंन उससे पूछा यह मोटर तुमने पहा से ली? यासीन मुस्कराया, तुम जानत हा माटर वाली को? मैंने कहा 'जानता हूं। तो बस समझ लो कि मेरे पास से आई। अच्छी लडकी है यासीन न मुझ प्राख मारी । मैं मुस्वरा दिया। उसक चौथ राज वाबू गोपीनाथ टैक्सी पर मेर दफ्तर में पाया । उसस मुझ मालूम हुआ कि जीनत म यासीन की मुलाकात क्स हुई । एक शाम का अपालो वदर म एक आदमी लेकर सरदार और जीनत नगीना होटल गई । वह आटमी तो किसी बात पर झगडकर चला गया लकिन होटल के मालिक स जीनत की दोस्ती हो गई। बाबू गोपीनाथ सतुष्ट था क्यापि दस-पन्द्रह रोज की दास्ती व दौरान यासीन ने जीनत का छ बहुत ही उम्दा और कीमती साडिया ले दी थी।वाबू गापीनाथ अब यह सोच रहा था कि कुछ दिन और गुजर यार 1 116/ टोबा टेवसिंह
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