वावू गोपीनाथ न अभी वाक्य पूरा भी नहीं किया था कि गुलाम अली ने कमर में दाखिल होकर बडे दुख से यह सबर दी कि हाटल म किमी हरामजाद न उसकी जेब मे स सार रपये निकाल लिए । बाबू गोपीनाथ मेरी तरफ दखकर मुस्कराया और फिर सौ रपये का एक नोट ब स निकाला और गुताम अली को दकर कहा 'जन्दी खाना ल पाया।' पाच छ मुलाकाता के बाद मुझे वार गोपीनाथ के मही व्यक्तित्व का ज्ञान हुग्रा। पूरी तरह तो सर इसान क्सिीको भी नहीं जान सकता, लेकिन मुझे उसके बहुत से हालात मालूम हो गए, जो वहद दिलचस्प थ । पहले तो मैं यह कहना चाहता है कि मरा यह खयाल कि वह परले दर्जे का चुगद है गलत सावित हुमा । उसको इस बात का पूरा एह्मास था कि मण्टो गफ्फार साइ गुलाम अली और मरदार वगरा जा उसके मुमा- हित्र और यार वन हुए थ मतलबी इमान है । वह उनस झिकिया, गालिया सब सुनता था, लेक्ति गुम्सा प्रक्ट नहीं करता था। उसन मुझम क्हा मण्टा माहब मैंन अाज तर रिसीवी सताह रद्द नही की। जब भी काई मुझे सलाह देता है मैं कहता हू सुबहान अल्लाह । वे मुझे ववकूफ समभन है जमिन मैं उ ह अक्तमद गमझता हू, इमलिा कि उनम यम स कम इतनी अक्ल तो है जा मुभम ऐमी देवकूफी का पिनारन पर लिया, जिमसे उनका उल्लू मीचा ता सकता । यात दरप्रगल य' है कि मैं गुरु से पकीरा और कजरा वी सोहबत म रहा है । मुझे उनम कुछ मुह त- मीहा गई है। मैं उनके बगर नही रह गाता । मैंन माच रमा है, जर मेरी दौलत मत्म हो जाएगी तो किमी तक्यि म जायगा। रपी या पाठा और पीर का मजार बम, य दा जगहें एमी है जहा मर लिया सुवा मिलता है। री या याठा ता घट जागा, इमतिय रिजेवयानी हान पाती है, लेकित हिम्नान म हजारा पीर है मिमी एर के मजार पर चना जाऊगा। मैंन उगम पूरा री पाठ मौर तरिय प्रापराया पग- हैं? पुछ दर मायमर उगन जगय गि, इमकिमि TT जगा पर पा स नार छन तर पाया हो धागा हाता है। जो प्रारमी मुद 110/रा टरमिट
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