सैण्डो ने कहा यह बडे खानाखराव है मण्टा साहब बडे साना- खराव । लाहौर की कोई एमी तवायफ नही जिसके साथ बाजू साहर की कण्टी यूटनी न रह चुकी हो वाचू गोपीनाथ न यह सुनकर बडी भाडी विनम्रता के साथ वहा 'अव कमर में वह दम नहीं रहा मण्टा साहव । इसके बाद वाहियात सी बातचीत शुरू हो गई । लाहौर की सब रण्डिया के घरान गिने गए-कौन डेरेदार थी, कौन नटनी थी कौन क्सिकी नोची थी। नथनी उतारे पर बाबू गोपीनाथ ने क्या दिया था वगर वगरा। यह बातचीत सरदार, सण्डो गफ्फार साइ और गुलाम अली के वीच हाती रही-ठेठ लाहौर के कोठा की भापा म । मनलब ता मैं समझता रहा मगर कुछ मुहावरे मेरी समझ म न आए । जीनत बिलकुल खामोश वठी रही । कभी कभी किमी बात पर मुम्बरा दती। मुझे एसा महसूस हुग्रा वि उस इस बातचीत से कोई दिल- चस्पी नहीं थी। हल्की ह्विस्वी का एक गिलास भी उसने पिया वगैर किमी दिलचस्पी के । सिगरट भी पीती थी तो मालूम होता था, उस तम्बाकू और उसके धुएँ म कोई रुचि नहीं है। लक्नि मजे की बात यह ह कि सबसे ज्यादा सिगरेट उसीने पिए। बाबू गोपीनाथ से उस मुह पत थी, इसका पता मुझे किसी बात स न मिला। इतना जाहिर था बाबू गोपीनाथ का उसका वापी खयाल था, क्योकि जीनत के प्राराम के लिए हर सामान मौजूद था। लेकिन एक बात मुझे महसूस हुई कि इन दोना मे कुछ अजीब सा खिचाव था। मरा मतलब है कि वे दोना एक दूसरे स कुछ करीब होन के बजाय कुछ हटे हुए स मालूम होत थ । पाठ बज के परीव सरदार डाक्टर मजीद के यहा चली गई क्योकि उस मारपिया का इजेक्शन लेना था। गफ्फार साइ तीन पग पीन व याद अपनी तस्वीह (माला) उठाकर कालीन पर सा गया। गुलाम अली का हाटल स साना लेन का भेज दिया गया। सण्डा न अपनी दिलचस्प वक- वास जर कुछ समय के लिए बद की ता वायू गापीनाथ ने, जा भव नाम था जीनत की तरफ वहीं प्राशियाना निगाह डालसर वहा, मण्टो साब, मरी जीनत क बार म प्रापका क्या सयाल है ? 108/टोवा टपसिंह
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