पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/७९

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अग्रवाल ज्ञानकोश (अ) ६४ अग्रवाल देवजीने प्रसन्न होकर इसको आशिर्वाद दिया। एक ही गुरू होनेसे गर्ग गोत्र और भवन अथवा एक प्रेतको सहायतासे हरिद्वार पहुँचकर गर्ग | गोधर गोत्र में परस्पर विवाह सम्बन्ध निषिद्ध है। ऋषिको साथ लेकर सब तीर्थ स्थानों में भ्रमण इनके गोत्रोंके नाम निम्नलिखित हैं--(१) गर्ग, किया, फिर हरिद्वार वापस श्राकर महालक्ष्मीकी (२) गोइल, (३) गावल, (४) यात्सिल (५) पूजा आरम्भ की। महालक्ष्मीने प्रसन्न होकर कासिल (कंसल) (६) सिंहल (७) मंगल वरदान दिया कि इन्द्र तेरे वशमें होगा और तेरे | (८) भद्दल ६) तिङ्गल (१०)ऐरण (११) वंशज तेरे नामसे प्रसिद्ध होकर धनधान्यसे परि- टैरण (१२) ठिङ्गल (१३) तित्तल (१४) पूर्ण होंगे। इहलोकके बाद तुम और तुम्हारी मित्तल (१५) तुन्दल (१६) तायल (१७) पनि ध्रुव नक्षत्रके समीप रहोगे। देवीके श्राशा गोभिल (२७) नोइन (गवन) आधा । नुसार ही उसने कोलापुर आकर महीधरकी मध्यकालीन इतिहास तथा स्थिति-परिवर्तन-पूर्व कन्याओंसे विवाह किया। तदनन्तर देहलीमें | कालमें तो ये वेदपाठी थे त्रैकालिक संध्या भी आकर रहने लगा और एक विस्तृत राज्य बसाया। | करते थे और सनातन धर्मावलम्बी थे। किन्तु उसीने श्रागरा बसाया था जो उस समय अग्र. जब जैन धर्मका भारतमें अधिक ज़ोर फैला तो वतीके नामसे विख्यात था । कोलापुरसे आनेके इस कुलके तत्कालीन राजा दिवाकरने जैन धर्म पश्चात् द्वितीय बार यमुनाके तटपर बड़े समारोह ग्रहण कर लिया। आज तक भी बहुतसे अग्र- से इसने महालक्ष्मीका पूजन किया था और जहाँ वाल जैन धर्मावलम्बी हैं । पर देवीने प्रकट होकर इसे अनेक वर दिये उसी । यो तो समय समय पर उनका उत्थान और स्थानका नाम अग्रवती पड़ा, और वही उसकी . पतन वराबर ही होता रहा, किन्तु पहला धक्का राजधानी हुई। इस बार देवीने प्रसन्न होकर अग्रसेनकी युद्ध में मृत्युके बाद ही पहुँचा। राजा इसकी कुलदेवी होना स्वीकार किया और आशा ! अग्रसेन और उनके मन्त्रीकी युद्धभै मृत्यु होनेके की कि उसके वंशज दीपावलीके दिन बड़े समा पश्चात् इनके १८ लड़कोने मन्त्री पुत्रों (परशुराज रोहसे महालक्ष्मीको पूजा किया करें। धीरे धीरे और पशुराज) सहित भाग कर पञ्जाबके हिसार इसका प्रभुत्व बढ़ता ही गया। उत्तर में हिमालय | जिलेके पास एक नगर बसाया! उस समय की तराइयोसे लेकर पक्षाव तक इसीका राज्य इनकी स्थिति अच्छी न थी। विवाह सम्बन्धमें था। पूर्व और दक्षिणमें गंगानदी इसके राज्यकी भी कठिनाई होने लगी। अतः अपने पिताके सीमा थी। पश्चिममें मारवाड़ तक इसके पूज्य गुरू पातञ्जलीकी श्राशानुसार तथा मन्त्री- शासनमें था। पुत्रोंसे सम्मति लेकर अपने अपने गोत्रोको बचा गोत्र इतिहास-इनके गोत्रोंकी उत्पत्तिमें भिन्न भिन्न | कर आपसहीमें विवाह करने लगे। इसका कल्पनाये हैं। कुछका तो कथन है कि राजा श्राग्रसेन | परिणाम यह हुआ कि अन्य सूर्यवंशीसे इनका ने १८ यज्ञ किये। प्रत्येक यशोले ही इनके गोत्रोंके | सम्बन्ध टूट गया और उस समयकी प्रथाके नाम । जब वह अट्ठारहवाँ यज्ञ कर रहे थे | विरुद्ध आपस ही में विवाह करनेसे जनताकी तब उनको निर्दोष पशुओंको बलिके समय बड़ा | दृष्टिमें भी इनका पहला ऐसा स्थान नहीं रह दुःख होने लगा और बिना यज्ञ समाप्त किये हुए | गया । किन्तु अट्ठारहों राजकुमारोंने भी बड़े ही अपने वंशजोंको बलि देनेका और पशुओंकी | परिश्रम और तत्परतासे अपना पूर्व ऐश्वर्य फिरसे हत्या करनेका भविष्यमें निषेध किया। इनके १७ प्राप्त किया। सबसे बड़े राजकुमारको राज्या- रानियाँ थीं और एक उपपत्रि। उन्हींके वंशज | भिषेक कर अग्रोहाको अपनी राजधानी बनाया अग्रवाल कहलाये। उन साढ़ेसत्रह यज्ञोंसे साढ़े और सुखपूर्वक सब राजकुमार दिन व्यतीत सत्रह गोत्र अग्रवालोंमें श्राज तक भी विद्यमान करने लगे। पुष्पदेवकी मृत्युके पश्चात् उनका हैं। किन्तु कुछका कथन है कि इनके अक्षरह पुत्र अनन्तमाल गद्दी पर बैठा। इसके कालमें पुत्रोके नामसे अथवा उनके गुरूओके नामसे ही अग्रोहाने बड़ी उन्नति की। इनके कुलके अन्य इनके गोत्रोके नाम पड़े। सबसे छोटे राजकुमार लोग भी धन धान्यसे परिपूर्ण थे। व्यापार ही का कोई अलग गुरू नहीं मिला तो अपने बड़े भाई | इनका प्रधान व्यवसाय था और लक्ष्मीकी विशेष के गुरू गर्गको ही अना गुरू बना लिया। कृपा होनेसे लक्ष्मीपुत्र कहे जाते थे। अग्रोहामें जिसका फल यह हुआ कि इसका गोत्र 'गवन | केवल दो लाख तो इन्हींकी बस्ती थी। जिस अथवा गोधर'श्राधा ही माना गया। अब भी समय ३२७ ई. पू. में सिकन्दरने भारत पर - -